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5 भत्रति कर्मत्वपरिणामः सतो रागादिजीवाज्ञानपरिणामाद्धेतोः पृथग्भूत एव पुद्गलकर्मणः परिणामः । किमात्मनिस्पृष्टं किमवद्धस्पृष्टं कर्मेति नयविभामेनाह । 卐
अर्थ- जो जीवकरि सहित ही पुद्गलद्रव्यका कर्मरूप परिणाम होय है ऐसें मानिये तो ऐसे तौ फ
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卐 जीव अर पुद्गल दोऊहीके का जाल हो जाया । तातें जीवभाव निमित्तकारण हैं, 卐 तिन बिना न्यारा ही कर्मका परिणाम है. सो एक दलद्रव्यहीका कर्मभावकरि परिणाम है । टीका - जो पुलका कर्मपरिणाम है, सो तिसकू' निमित्तभूत जो जीवका रागादि अज्ञान- 5
परिणाम, तिसरूप परिणया जो जीव, तिसकरि सहित ही होय है । ऐसा तर्क कीजिये तौ पुगल5 द्रव्यकै अर जीवके दोऊके जैसे हलके अर फिटकडीकै दोऊकै साथी ही रंगका परिणाम होय हैं, फ तैसें दोऊही कर्मपरिणामकी प्राप्ति आवे है । सो ऐसें हैं नाहीं । तातें ऐसा सिद्ध होय है, जो कर्मपरिणाम है सो एक पुद्गलद्रव्य हीका है । तातें जीaar रागादिस्वरूप अज्ञानपरिणाम जो क 15 कर्मकूं निमित्तकारण हैं, तिनि न्याराही पुद्गलकर्मका परिणाम है ।
भावार्थ- जो पुद्गलद्रव्यका कर्मपरिणाम होना जीवको साथिही मानिये, तौ दोऊके कर्मपरिफणाम ठहरे। तातें जीवका अज्ञानरूप रागादिपरिणाम कर्मकूं निमित्त है । तिसतें पुद्गलकर्मपरि फ्र णाम पुद्गलद्रव्य जीवतें न्यारा ही है। आगे पूछे है, जो आत्माविषे कर्म है, सो बद्धस्पृष्ट है, फ कि अस्पृष्ट है ? ऐसें पूछे नयविभाग करि उत्तर कहे है | गाथा -
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जो कम्मं बद्धं पुढं चेदि ववहारणयभणिदं ।
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सुद्धणयस्स दु जीवे अवद्धपुढं हवइ कम्मं ॥ ७३ ॥ ata Tie चेति व्यवहारनयभणितं ।
शुद्धrयस्य तु जीवे अबद्धस्पृष्ट भवति कर्म ॥७३॥
आत्मख्यातिः - जीवपुदलकर्मणोरेकबंधपर्यायत्वेन तदतिव्यतिरेकाभावाज्जीवे बद्धस्पृष्ट कर्मेति व्यवहारनयपक्षः ।
जीवपुद्गलकर्मणोरनेकद्रव्यत्वेनात्यं तथ्य तिरेकाज्जीवेऽबद्धस्पृष्टं कर्मेति निश्रयपक्षः । ततः कि---
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