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फ हैं, सो यह तो काहेतें है ? बहुरि अज्ञानी के अज्ञानमय ही सर्व भाव होय हैं अर अन्य नाहीं फ
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होय हैं, सो यह काहे होय हैं ? इस ही प्रश्नके उत्तररूय गाथा हैं। गाथाणाणमया भावाओ णाणमओ चेव जायदे भावो ।
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आर्याछन्दः
ज्ञानमयएव भावः कुतो भवेद् ज्ञानिनो न पुनरन्यः ।
सर्वनाः॥२
अर्थ - इहां प्रश्न वचन है। जो ज्ञानीके हौ ज्ञानमय ही भाव होय हैं अर अन्य नाहीं होय
जम्हा तम्हा णाणिस्स सव्वे भावा दु णाणमया ॥ ६०॥ अगणाणमया भावा अण्णाणो चेव जायए भावो ।
जम्हा तम्हा भावा अण्णाणमया अणाणिस्स ॥ ६१ ॥
ज्ञानमयाद्भावाद् ज्ञानमयश्चैव जायते भावः ।
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यस्मात्तस्माज्ज्ञानिनः सर्वे भावाः खलु ज्ञानमयाः ॥ ६० ॥ अज्ञानमयाजावादज्ञानश्चैव जायते भावः ।
यस्मात्तस्माद्भावादज्ञानमया अज्ञानिनः ॥ ६१ ॥
आत्मख्यातिः - यतो खज्ञानमयाद् भावाद्यः कथनापि भावो भवति स सर्वोदयज्ञानमयत्वमनतिवर्तमानोऽज्ञानमयएव
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प्राभूत
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5 स्यात् ततः सर्व एवाज्ञानमया अज्ञानिनो भावाः । यतश्च ज्ञानमवाद भाषायः कञ्चनापि भावो भवति स सर्वोपि ज्ञान
मयत्वमनतिवर्तमानो ज्ञानमय एव स्यात् ततः सर्व एव ज्ञानमया ज्ञानिनो भावाः ।
अर्थ - जातें ज्ञानमय भावतें ज्ञानमय ही भाव उपजे हैं, तातें ज्ञानीके निश्चयतें सर्व भाव 卐 ज्ञानमय ही उपजे हैं । बहुरि जातें अज्ञानमय भावतें अज्ञानमय ही भाव होय हैं तातें अज्ञानीके अज्ञानमय ही भाव उपजे हैं ।
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टीका--जातें निश्चयकरि अज्ञानमय भावतें जो कुछ भाव होय है सो सर्व ही अज्ञानपणाकूं 5