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णामस्वभावत्वे सत्यपि कारणानुविधायित्वादेव कार्याणां अज्ञानिनः स्वयमन्त्रानमयाद् भावादज्ञानजातिमनतिवर्तमाना । विविधा अप्यज्ञानमया एव भावा भवेयुर्न पुनर्ज्ञानमयाः ज्ञानिनश्च स्वयं ज्ञानमयाद् भावाद् ज्ञानजातिमनतिवर्तमानाः सर्वे ।। ज्ञानमया एव भाषा भवेयु ने पुनरज्ञानमयाः ।
___ अर्थ-प्रथम दृष्टांत जैसे सुवर्णमय भावतें सुवर्णमय कुडलादिक भाव होय हैं । बहुरि लोह- 4 .. मयभावतें लोहमय कडा इत्यादिक भाव होय हैं । याका दृष्टांत-तैसें अज्ञानीके अज्ञानमय भावते + अनेक प्रकारके अज्ञानमय भाव होय हैं, बहुरि ज्ञानीकै सर्व ज्ञानमय भावतें सर्व ही ज्ञानमय
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भाव होय है। "
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___टीका-जैसें निश्चयकरि पुद्गलद्रव्यके स्वयं परिणाम स्वभावपणारूप होते भी जैसा पुद्गल + के कारण होय तिसका स्वरूप कार्य होय, यह प्रसिद्ध है । ऐसें होतें सुवर्णमय भावतें सुवर्णजाताकू,
नाहीं उल्लंघ्य वर्तता सुवर्णभय ही कुंडल आदिक भाव होय हैं, सुवर्णत लोहमय कडा आदिक । 9 भाव न होय हैं। बहुरि लोहमयभावते लोहकी जातीकू नाही उल्लंघ्य वर्तते लोहमय कडा + __ आदिक भाव होय हैं, बहुरि लोहत सुवर्णमय कुंडल आदिक भाव नाहीं होय हैं, तैसें जीवके + स्वयंपरिणाम भावरूप होते संते भी 'जैसा कारण होय तैसा ही कार्य होय ऐसा न्याय है इस 4 1- न्यायतें अज्ञानीके स्वयमेव अज्ञानमय भावतें अज्ञानकी जातीकू नाही उल्लभ्य वर्तते अनेक
प्रकारके अज्ञानमय ही भाव होय हैं ज्ञानमय नाहीं हो है। अर ज्ञानीके स्वयमेव ज्ञानमय । 45 भावतें ज्ञानकी जातीकू नाही उल्लंघ्य वर्तते सर्व ज्ञानमय ही भाव होय हैं, अज्ञानमय नाहीं ।
"होय हैं। 9 भावार्य-जैसा कारण होय तैसा ही कार्य होय इस न्यायतें जैसे सुवर्णते तौ.सुवर्णमय गहमे 5 .. होय, लोहतें लोहमय होय, तैलें अज्ञानीके अज्ञानतें अज्ञानमयभाव होय है, ज्ञानीके जानते .. मामब ही भाव होय हैं । इहां ऐसा आशय जानना, जो अज्ञानभाव तौ क्रोधानिक हैं, शानभाव
माविक हैं । यद्यपि अविरतसम्पदृष्टिके चारित्रमोहके उदयतें क्रोधाविक भी प्रा हैं, कामि
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