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9 परद्रव्यस्वरूप समस्त हो अंतरंगकर्मकू करे है। जातें दोऊ परद्रव्यस्वरूप हैं, इनिके करनेमें ॥ विशेष नाहीं ऐसे व्यवहारी जीवनिके व्यामोह है, अज्ञान है।
भावार्थ-परद्रव्यनिका कर्ता आपकू मानना यह व्यवहार है। सो परमार्थदृष्टि में यह अज्ञान प्राया है। आगें कहे हैं, यह व्यवहारका मानना परमार्थदृष्टिमें भला नाही, सत्यार्थ नाहीं। गाथा
जदि सो परदव्वाणि य करिज णियमेण तम्मओ होज । जहमा ण तम्मओ तेण सो ण तेसिं हवदि कत्ता ॥३१॥
यदि स परद्रव्याणि च कुर्यान्नियमेन तन्मयो भवेत् ।।
यस्मान्न तन्मयस्तेन स न तेषां भवति कर्ता ॥३१॥ का आत्मख्याति:-यदि खल्वयमात्मा परद्रव्यात्मकं कर्म कुर्याद तदा परिणामपरिणामिमावान्यथानुपपरेनियमेन
तन्मयः स्यात् न च द्रव्यांतरमयत्वे द्रन्योच्छेदापत्तेस्तन्मयोस्ति । ततो म्याप्यव्यापकमावेन न तस्य कर्तास्ति। निमिच
नैमिलकमावेनापि न कर्तास्ति । ज अर्थ-जो आत्मा परद्रव्यनिकू करे, तौ सो आत्मा तिनि परद्रव्यनितें नियमकरि तन्मय होय .. 'जाय । बहुरि तन्मय नाहीं होय है, तिसकारणकरि तिनिका कर्ता नाहीं है। + टीका-जो निश्चयकरि यह आत्मा परद्रव्यस्वरूप कर्म करे तौ, परिणामपरिणामि भाव ।
की अन्यथा अप्राप्ति नियमकरि तन्मय होय । सो ऐसे होय नाहीं। जो ऐसे होय, तौ अन्य ॐ द्रव्यते अन्यद्रव्य तन्मय होने से, अन्यद्रव्यका उच्छेद होय, नाश होय । तातें व्याप्यव्यापकभाव ' 1 करि तो, तिस परद्रव्यका कर्ता आत्मा नाहीं है। । भावार्थ-अन्यद्रव्यका अन्यद्रव्य कर्ता होय, तौ न्यारे न्यारे द्रव्य काहेकू रहै ? अन्य द्रव्यका - नाश होय । यह बड़ा दोष आवै । तातें अन्यद्रव्यका कर्ता अन्यद्रव्यकू कहना भला नाहीं। आगे
कोई जानेगा, कि व्याप्यव्यापकभावकरि तौ कर्ता नाही; तथापि निमित्तनैमित्तिक भावकरि तौ ।
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