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टीका - जे निश्चयनयकरि ज्ञानावरणरूप परिणाम हैं, ते 'जैसें गोरसमें व्यास दही, दूध, मीठा, खाटा परिणाम हैं" तैसें पुद्गलद्रव्यतें व्याप्तपणाकरि होते संते पुद्गलद्रव्यहीके परिणाम 5 हैं। तिनिकं जैसें गोरसके निकट बैठा पुरुष तिसके परिणामकुं देखे जाने है, तैसें आत्मा ज्ञानी 卐 तिनि पुद्गल के परिणामनिका ज्ञाता द्रष्टा है, कतां नाहीं है । तौ कहा है ? जैसे गोरसकूं 5 गोरसके निकट बैठा पुरुष तिसकू देखे है । तिस देखनेरूप अपने परिणामतें व्यासपणेरूप होता संता तिकू व्याप्यकरि देखे ही है । तैसें ही पुद्गलपरिणाम है निमित्त जाकू ऐसा अपना ज्ञान, ताकू आपतें व्याप्यपणाकरि होता, ताकू व्याप्यकरि जाने ही है । ऐसें ज्ञानी ज्ञानहीका कर्ता क 4 होय है । ऐसें ही ज्ञानावरणपदकूं पलटिकरि कर्म सूत्रका विभागकरि स्थापनेते, दर्शनावरण, वेदनीय, मोहनीय, आयु, नाम, गोत्र, अंतराय इनिके सूत्र सात करि, बहुरि तिनिकरि सहित 5 5 मोह, राग, द्वेष, क्रोध, मान, माया, लोभ, नोकर्म, मन, वचन, काय, श्रोत्र, चक्षु, प्राण, रसना, स्पर्शन ए सोलह सूत्र व्याख्यानरूप करणे । बहुरि इसही रीतिकरि अन्य भी विचारणे । आगें फ कहे हैं, जो अज्ञानी है, सो भी परद्रव्यके भावका कर्ता नाहीं है । गाथाजं भावं सुहमसुहं करेदि आदा स तस्स खलु कत्ता । तं तस्स होदि कम्मं सो तस्स दु वेदगो अप्पा ॥ ३४ ॥ यं भावं शुभमशुभं करोत्यात्मा स तस्य खलु कर्ता ।
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तत्तस्य भवति कर्म स तस्य तु वेदक आत्मा ||३४||
आत्मख्यातिः–इह खल्त्रनादेरज्ञानात्परात्मनो रेकखाध्यानेन पुद्गलकर्म विपाकदशाभ्यां मंदतीवश्वादाभ्यामचलित- 5 विज्ञानघनैकस्वादस्याप्यात्मनः स्वादं भिदानः शुभमशुभं वा योयं भावमज्ञानरूपमात्मा करोति स आत्मा तदा तन्मयत्वेन 55 तस्य भावस्य मावकत्वाद्भवत्यनुभविता, स भावोपि च तदा तन्मयत्वेन तस्यात्मनो भाग्यत्वात् भवत्यनुभाग्यः । एवम5 शानी वाषि परभावस्य न कर्ता स्यात् । न च परभावः केनापि तुपात ।
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