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स्तवस्तूका संबंध रहित अमर्यादरूप शुद्धचैतन्य धातुमय है तौऊ अज्ञानतें सविकार सोपाधिफ रूप किया जो अपना चैतन्यपरिणाम, तिसपणाकरि तिसप्रकारका अपना परिणामका कर्ता प्रति 5 भासे हैं । ऐसें आत्माकै भूताविष्टपुरुषकी ज्यों तथा ध्यानाविष्टपुरुषकीज्यौं कर्तापणाका मूल अज्ञान प्रतिष्ठित भया, प्रगटपणें ठहरथा । सोही प्रगट दृष्टांतकरि दिखावे हैं- जैसे कोई पुरुष भूताविष्ट क 5 भया अपना शरीरमैं भूत प्रवेश कीया, सो वह पुरुष अज्ञानतें भूतकुं अर आपकूं एकरूप करता 卐 संता जैसी मनुष्यके योग्य वेष्टा न होय तैसी करने लगा, तिस चेष्टाका आलंबनरूप अतिभय5कारी आरंभकरि भरया अमानुष व्यवहारपणाकरि तिसप्रकार चेष्टारूप भावका कर्ता प्रतिभासे है, ते ही यह आत्मा भी अज्ञानही पर अर आत्माकूं भाव्यभावरूप एक करता संता निर्विकार 卐 अनुभूतिमात्र भावकके अयोग्य अनेक प्रकार भाव्यरूप क्रोधादि विकारकरि मिल्या चैतन्यका विकारसहित परिणामपणाकारे तिसप्रकारके भावका कर्ता प्रतिभासे है । बहुरि जैसे कोई भोला 卐 पुरुष अपरीक्षक आचार्य का उपदेशकरि भैसेका ध्यान करने लगा, सो अज्ञानतें भैंसेकूं अर 5 आपकूं एकरूप करता आपकेविवें अभ्रकष कहिये बादल स्पर्शतें भेदतें सींग जाके ऐसा महान् 5 बड़ा भैंसापणाका अध्यासतें मनुष्यके योग्य जो ओवराकुटीका द्वारर्ते नीसरणा तिसतें च्युत भया 5 तिसप्रकारके भावका कर्ता प्रतिभासे है । तैसे ही यह आत्मा भी अज्ञानतें ज्ञेयज्ञायक जे पर अर 55 आत्मा तिनिकूं एकरूप करता आत्माकेविषै परद्रव्यके अध्यास निश्चयतें मनके विषयरूप किये धर्म, अधर्म, आकाश, काल, पुद्गल, अन्य जीवद्रव्य, तिनिकरि रुकी जो शुद्धचैतन्यधातु तिसप 5 करि तथा इंद्रियनि विषयरूप किये जे रूपी पदार्थ तिनिकरि तिरोहित किया ढक्या गया
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जो अपना केवल एकज्ञान तिसपणाकरि तथा मृतकशरीर विषै मूर्छित भया परम अमृतरूप विज्ञानघन आत्मा तिसपणा करि तिसप्रकारके भावका कर्ता प्रतिभासे है ।
भावार्थ --- यह आत्मा अज्ञानतें क्रोधादिककूं तौ भाव्यभावकसंबंधतें आप एक रूप माने 5 है। अर धर्मादि द्रव्य ज्ञेय रूप हैं, तिनिकूं आप एक करि माने है। सो जैसा आपका भाव
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