________________
+ !
| 555 ॐ ॐ ॐ5
यनिळू जीव कहे हैं । बहुरि केई कर्मकू जीव कहे हैं। बहुरि अन्य केई अध्यवसाननिवि तीव्र मंद अनुभागगतकू जीव माने हैं। बहुरि अन्य केई नोकर्मक जीव माने हैं। बहुरि और कई कर्मका उदयकू जीव माने हैं । बहुरि और कई कर्मके अनुभागकू जीव इष्ट करे हैं। कैसा है ॥ अनुभाग ? तीवमंदपणारूप गुणकरि जो भेदकू प्राप्त होता है। बहुरि केई जीव अर कर्म दोऊ .... मिले ही जीव है ऐसे इष्ट करे हैं। बहुरि अन्य केई कर्मनिका संयोगकरि ही जीव माने हैं। या :
प्रकार तथा और भी बहुतप्रकार दुर्बुद्धि मिथ्यादृष्टि परकू आत्मा कहे हैं, ते परमार्थ सत्यार्थवादी ।। " नाही हैं। ऐसे निश्चयवादी जे सत्यार्थवादी तिनिकरि कहे हैं।
टीका-या जगतवि तिस आत्माके असाधारण लक्षण नाहीं जाननेते नपुंसकपणाकरि॥ अत्यंतविमूह भये संते, अनानी जन हैं ते, तात्त्विक परमार्थभूत आत्माकू नाहीं जानते संते, बहुत .. हैं। ते बहुतप्रकार परहीकू आत्मा ऐसा प्रलाप बके हैं । तहां केई तो स्वाभाविक स्वयमेव भया :
ऐसा रागद्वेषकरि मैला जो अध्यवसान कहिये आशयरूप विभावपरिणाम सोही जीव है ऐसें कहे ।। " हैं। याका हेतु कहे हैं, जो जैसे अंगारकै कालिमा है तैसें अध्यवसानते अन्य कोई जीव दीखे ।
नाहीं, ऐसे हेतुते साधे हैं ॥१॥ बहुरि केई कहे हैं, जो पूर्वं तौ आनादितै लेकरि अर आगामी
अनंतकालतांई ऐसा है अन्यत्र जाका ऐसा जो एक संसरण कहिये भ्रमणरूप क्रिया, तिसरूपकरि 卐 क्रीडा करता जो कर्म, सोही जीव है । जातें इस कर्मत अन्य न्यारा किछू जीव देखनेमें आया है
नाहीं ऐसें माने हैं ॥२॥ बहुरि केई कहे हैं, जो जीव मंद अनुभवकरि भेदरूप भया अर दूरि है 卐 अंत जाका ऐसा रागरूप रसकरि भरया जो अध्यवसानका संतान परिपाटी सोही जीव है। जातें +
इसते अन्य कोई न्यारा ही जीव देखनेमें आया नाहीं, ऐसें माने हैं ॥३॥ बहुरि केई कहे हैं, जो,
नवीन अर पुरातन जो अवस्था इत्यादि भावकरि प्रवर्तमान जो नोकम सोही जीव है । जाते इस - शरीरतें अन्य न्यारा ही किछ जीव देखनेमें आया नाहीं ऐसैं माने हैं ॥४॥
बहुरि केई ऐसैं कहे हैं, जो समस्तलोककू पुण्यपापरूपकरि व्यापता कर्मका विपाक है सोही
+
+
+
5