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अर्थ - उपयोग अनादितें लेकरि तीन परिणाम हैं, जातें यह अनादिहीतें मोहयुक्त है, ताके निमित्त होय हैं। तहां मिथ्याल, अज्ञान, अविरतिभाव ए तीन जानने ।
टीका -- निश्चयकरि समस्त वस्तुनिके अपने स्वरसपरिणमनते स्वभावभूत स्वरूपपरिणाम विषै प्र समर्थपणा होतें भी आत्मा के उपयोग के अनादिही अन्य वस्तुभूत जो मोह तिसकरि युक्तपणातें मिथ्यादर्शन, अज्ञान, अविरति ऐसें तीन प्रकार परिणामके विकार है । सो यह जैसें स्फटिकम5 णीकी स्वच्छता के परके डंकतें परिणामविकार होता देखिये हैं तैसें ही है, सोही प्रगटकरि कहे हैं । 45 जैसे स्फटिककी स्वच्छता कै अपना स्वरूप जो उज्वलता तिस रूप परिणामकी समर्थता होतें भी कदाचित् काल काला, हरया, पीला जो तमाल कदली कंचनका पात्र ताका उपाश्रय समीप 4 युक्तपणातें नीला, हरा, पीला ऐसा तीन प्रकार परिणामका विकार दीखे हैं, तैसें ही आत्मा के उपयोग अनादि मिथ्यादर्शन, अज्ञान, अविरतिस्वभाव जो अन्य वस्तुभूत मोह, ताकरि युक्तपणातें 5 5 मिध्यादर्शन, अज्ञान, अविरति ऐसे तीन प्रकार परिणाम विकार देखना ।
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भावार्थ--- आत्माके उपयोग में ए तीन प्रकारके परिणाम विकार अनादिकर्म के निमित्ततें हैं । फ ऐसा नाहीं, जो पहले शुद्ध ही था यह नवीन भया है । ऐसें होय तौ सिद्धनिकै भी नवीन भया फ चाहिये, सो यह है नाहीं ऐसें जानना । आगे आत्माके इस तीन प्रकारके परिणाम विकारका कर्त्तापणा दिखावे हैं | गाथा
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एदेय उवओगो तिविहो सुद्धो णिरंजणो भावो ।
जं सो करेदि भावं उवओगो तस्स सो कत्ता ॥ २२॥
एतेषु चोपयोगस्त्रिविधः शुद्धो निरंजनो भावः ।
यं स करोति भावमुपयोगस्तस्य स कर्त्ता ॥ २२ ॥
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