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आत्मख्याति:-अयत्यरमन्दारिपचंदर भूतमोहनलालवमानेषु मिध्यादर्शनासानाविरतिभावेषु परिणामविकारेषु त्रिवेतेषु निमित्तभूतेषु परमार्थतः शुद्धनिरंजनानादिनिधनबस्तुसर्वस्वभूतचिन्मात्रभावत्वेनेकविधोप्पयुद्धसांजना :
नेकभावत्वमापधमानस्त्रिविधो भृत्वा स्वयमज्ञानीभूतः कर्तृत्वमुपढौकमानी विकारेण परिणम्य यं यं भावमात्मनः 卐 करोति तस्य तस्य किलोपयोगः कर्ता स्यात् । अथात्मनस्त्रिविधपरिणामविकारकर्तृत्वे सति पुद्गलद्रव्यं स्वत एव कर्मत्वेन ।
परिणमतीत्याह" अर्थ-मिथ्यात्व, अज्ञान, अविरति इनि तीननिका अनादित निमित्त होते आत्माका उपयोग 卐 शुद्धनयकरि एक है, शुद्ध है, निरंजन है । तोऊ याकै मिथ्यादर्शन अज्ञान अविरति ऐसें तीन : .- प्रकार परिणाम हैं सो इनिमें जिस भावकू आप करे है ताका कर्ता होय है। - टीका-पहली गाथामैं कहे जे तीन प्रकारके उपयोगके परिणामते अब पूर्वोक्त प्रकार अनादि 5 अन्यवस्तुभूत जो मोह ताकरि युक्तपणातें आत्मावि उपजते जे मिथ्यादर्शन अज्ञान अविरतिभाव
रूप तीन परिणामविकार तिनि निमित्तभूत होते आत्माका स्वभाव परमार्थते देखिये तो शुद्ध म निरंजन एक अनादिनिधन वस्तूका सर्वस्वभूत चैतन्यमात्र भावपणाकरि एक प्रकार है। तौऊ :
अशुद्ध सांजन अनेक भावपणाकू प्राप्त हुवा संता तीन प्रकार होय करि आप अज्ञानी हुवा संता 卐 कर्तापणाकू प्रात होता संता विकाररूप परिणानकरि जिस जिस भावकू आपकै करे है, तिस तिस .. भावका उपयोग प्रगटपणे निश्चयकरि कर्ता होय है।
_ भावार्थ-पूर्वे कहा है, जो परिगमै सो कर्ता है । सो इहां अज्ञानरूप होय उपयोग परिणम्या है जिसरूप परिणम्या तिसका कर्ता कह्या, शुद्ध द्रव्यार्थिकनयकरि आत्मा कर्ता है नाहीं, इहां उप- :
योगकू कर्ता जानना । बहुरि उपयोग अर आत्मा एक ही वस्तु है तातें आत्माही• कर्ता कहिये। . 卐 आगें आत्माकै तीन प्रकार परिणाम विकारका कर्तापणा होते सतै पुद्गलद्रव्य है सो आफ्ही : .- कर्मपणारूप होय परिणमे है। ऐसें कहे हैं । गाथा
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