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अर्थ- जो इस कर्म के परिणामकुं बहुरि तेसें ही नाकर्मके परिणामकूं आत्मा न करे है जातें 5 जो तिनि परिणामनि जाने है है ।
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टीका ---जो निश्चयकरि मोह, राग, द्वेष, सुख, दुःख आदि पर आप उपजता,
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सो तो कर्मका परिणाम है । बहुरि, स्पर्श, रस, गंध, वर्ण, शब्द, बंध, संस्थान, स्थौल्य, सूक्ष्म 卐 5 आदि रूपकरि वाहरि उपजता, सो नोकर्मका परिणाम है। सो ए समस्त ही परमार्थतें पुद्गल फ परिणामके अर पुद्गलके " जैसे घटके अर मृत्तिकाके व्याप्यव्यापक भावके सद्भावतें कर्ताकर्मपणा है” तैसें पुद्गलद्रव्य स्वतंत्र व्यापक होय कर्ता होयकरि किये हैं । अर ते आप अंतरंग व्याप्यरूप होय व्यापे हैं, तातें पुद्गलके कर्म हैं । अर पुद्गलपरिणामकै अर आत्माकै "घटकु
भकारक जैसा व्याप्यव्यापकभाव नाहीं है तैसा" व्याप्यव्यापकपणाका अभाव है, तातें कर्ताक- 5 मपणाकी असिद्धि है, तातैं कर्मनो कर्मपरिणामकू आत्मा नाहीं करे है। तहां यह विशेष है---
जो परमार्थ तैं पुद्गलपरिणामका ज्ञानकै अर पुद्गलके घट अर कुंभकारकी ज्यों व्याप्यव्यापक 5 भावका अभाव कर्त्ताकर्मपणाकी सिद्ध न होर्ते, आत्मपरिणामके अर आत्माकै घटमृत्तिकाकी ज्यों व्याप्यव्यापकभावके सद्भावतें आत्मद्रव्य जो कर्त्ता, ताकरि आप स्वतंत्र व्यापक होय करि, ज्ञाननामा कर्म किया है । तातैं सो ज्ञान आपही आत्मा व्याप्यरूप होय कर्मरूप भया है । तातें 5
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15 पुद्गलपरिणामको ज्ञानकुं कर्मपणाकरि कर्ता जो आत्मा ताहि आप जाने है। सो आत्मा पुद्गल- 45 परिणामरूप कर्मोकर्मतें अत्यंत भिन्न ज्ञानी भया संता ज्ञानीही होय है, कर्त्ता न होय है । 5 बहुरि ऐसें होतें ज्ञातापुरुषकै पुद्गलपरिणाम व्याप्यस्वरूप नाहीं है । जातैं पुद्गलकै अर आत्माकै क
ज्ञेयज्ञायक संबंध व्यवहारमात्रकरि होता संता भी पुद्गल परिणाम है निमित्त जाऊं ऐसा पुद्गलप
卐 रिणामका ज्ञान सो ही ज्ञाताकै व्याप्य है, तातें सो ज्ञान ही ज्ञाताका कर्म है। अब इस ही अर्थका 5 समर्थनका कलशरूपकाव्य है सो कहे हैं।
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