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5 अभिन्न वस्तु हैं, न्यारे न्यारे दोय वस्तु नाहीं । तातें परिणाम परिणामीर्ते भिन्न नाहीं । तातें 卐 यह ठहरथा, जो किछू किया है सो क्रियावान् द्रव्यतें भिन्न नाहीं है । ऐसें क्रियाका अर क्रियावान्का अभेदपणा है। ऐसी वस्तुकी मर्यादा होती संती, जैसा जीव व्याप्यव्यापक भावकरि, अपने परिणाम करे हैं, अर भाव्यभावकभावकरि तिसही अपने परिणाम अनुभवे है, भोगवे 5 है, तेसे ही व्याप्यव्यापकभावकरि पुद्गलकर्म भी करे तथा भाव्यभावभावकरि तिसहीकूं 57 अनुभवे भोगवे, तौ अपनी अर परकी मिली जो दोय क्रिया, तिनका अभिन्नपणा ठहरथा । ऐसा प्रसंग होते, अपना अर परका विभागका अभाव भया । तब ऐसे अनेक द्रव्यस्वरूप एक फ 5 आत्माकूं अनुभवता संता, मिध्यादृष्टि होय है, जातें ऐसा वस्तुस्वरूप जिनदेव कझा नाही, तातें जिनके मत बाह्य है।
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जह्मा दु अत्तभावं पुग्गलभावं च दोवि कुव्वंति ।
तेण दुमिच्छादिठ्ठी दोकिरियावादिणो हुंति ॥ १८॥ तस्मात्स्वात्मभावं पुद्गलभावं च द्वावपि कुर्वति ।
तेन तु मिथ्यादृष्टय द्विकियात्रादिनो भवति ॥ १८ ॥
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भावार्थ - दोय द्रव्यकी क्रिया भिन्न ही है । जडकी क्रिया चेतन करे नाहीं, चेतनकी किया जड करे नाहीं । जो पुरुष दोऊ क्रियाकूं एकद्रव्य करता माने, सो मिध्यादृष्टि है, जातें दोय aorat किया एक out मानना यहु जिनका मत नाहीं । आगें फेरि पूछे है, जो एकपुरुष दोय फ 5 क्रियाका अनुभवन करनेवाला मिथ्यादृष्टि कैसे ? ताका समाधान करे हैं। गाथा
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आत्मख्यातिः:--यतः किलात्मपरिणामं पुद्गउपरिणामं च कुर्वं तमात्मानं मन्यते द्विक्रियावादिनस्तवस्ते मिध्यादृष्टय १७
एवेति सिद्धांतः । भावैकद्रव्येण द्रव्यद्वयपरिणामः क्रियमाणः प्रतिभातु । यथा किल कुलालः कलशसंभवानुकूलमात्मन्या
卐 पारंपरिणाममात्मनो व्यतिरिक्तमात्मनोऽन्यतिरिक्ततया परिणतिमात्रया क्रियया क्रियमाणं कुर्वाणः प्रतिभाति न पुनः फ