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जीवपुद्गल परिणामयोरन्योन्यनिमित्तमात्रत्वमस्ति तथापि न तयोः कर्तृ कर्मभाव इत्याह-
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अर्थ- ज्ञानी है सो तो अपनी अर परकी दोऊकी परिणतिकुं जानता संता प्रवर्ते है । बहुरि पुद्गल है सो अपनी अर परकी दोऊ ही परिणतिकूं नाहीं जानता संता प्रवर्ते है । तौऊ ते दौऊ परस्पर अंतरंग व्याप्यव्यापकभावकू प्राप्त होनेकू असमर्थ हैं । जातें दोऊ भिन्नद्रव्य हैं । सो सदाकाल तिनिकै अत्यंत भेद है । सो ऐसें होतें, इनिकै कर्तृकर्मभाव मानना भ्रमबुद्धि है । सो 卐 जेतें इनि दोऊनिकै करोतकी ज्यौं निर्दय होय तत्काल भेदकूं उपजाय भेदज्ञान है ज्वाला यहु 5 प्रकाश जाकै ऐसा ज्ञान प्रकाश न होय तेतें ही है ।
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भावार्थ-भेदज्ञान भये पीछे पुद्गलकै अर जीवकै कर्तृ कर्मभावकी बुद्धि न रहे। जातें जेतें
5 भेदज्ञान नाही होय तेतें ही अज्ञानतें कर्तृ कर्मभावकी बुद्धि है। आगे कहे हैं, जो जीवके परि- 455 णामके अर पुद्गल परिणामके परस्पर निमित्तमात्रपणा है, तौऊ तिनि दोऊनिकै कर्तृकर्मभाव
तौ नाहीं है । गाथा
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जीवपरिणामहेदुं कम्मतं पुग्गला परिणमति । पुग्गलकम्मणिमित्तं तहेव जीवो वि परिणमदि ॥ १२ ॥
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गवि कुव्वदि कम्मगुणे जीवो कम्मं तहेव जीवगुणे । अण्णोणणिमित्तेण द परिणामं जाण दोहणंपि ॥ १३ ॥
एदेण कारणेण दु कत्ता आदा सएण भावेण । पुग्गलकम्मकाणं ण दु कत्ता सव्वभावाणं ॥ १४ ॥ जीवपरिणामहेतु कर्मत्वं पुद्गलाः परिणमति ।
पुद्गलकर्मनिमित्तं तथैव जीवोपि परिणमति ॥ १२॥
प्रामुख
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