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ऊ पाहतशाल साह लाहोगा, तो रूह महिना सिवाय न लागेगा । तातें अन्य निष्प्रयोजन कोलाहल 卐
छोडि यामै लागै शीघ्र रूपकी प्राप्ति होयगी ऐसा उपदेश है। आर्गे शिष्य पूछे है, जो ए अध्यवसानादिकभाव जीव न बताये, अन्य चैतन्यस्वभावजीव बताया, सोए भाव भी तौ चैतन्यहीते अन्वयी प्रतिभासे हैं, चैतन्यविना जडकै तौ दीखै नाही, इनिळू पुद्गलके स्वभाव कैसे ? ऐसे पूछे उत्तरका सूत्र कहे हैं । गाथा
अट्ठविहं पि य कम्मं सव्वं पुग्गलमयं जिणा विति। जस्स फलं तं वुच्चदि दुक्खं ति विपञ्चमाणस्य ॥४५॥
अष्टविधमपि च कर्म सर्व पुद्गलमयं जिना विंदति ।
यस्य फलं तदुच्यते दुःखमिति विपच्यमानस्य ॥४५॥ आत्मख्याति:-अध्यवसानादिभावनिवर्तकमष्टविधमपि च कर्म समस्तमेव पुद्गलमयमिति किल सकलज्ञज्ञप्तिः । + तस्य तु यद्विपाककाष्ठामधिरूढस्य फलस्वेनाभिलप्यते । तदनाकुलत्वलक्षणसौख्याख्यात्मस्वभावविलक्षणत्वात्किल दुःखं .
उदंतःपातिन एव किलाकुलत्वलक्षणा अध्यवसानादिभावाः । ततो न ते चिदन्वयविभ्रमेप्यात्मस्वभावाः किंतु पुद्गल. ॐ स्वभावाः । यद्यध्यवसानादयः पुद्गलस्वभावास्तदा कथं जीवत्वेन सूचिता इति चेव। . ____ अर्थ-आठप्रकार कर्म ज्ञानावरणादिक हैं, ते सर्व ही पुद्गलमय हैं यह जिनभगवान् सर्वज्ञ
देव कहे हैं । बहुरि याका फल है सो दुःख है। यह कर्म पचिकरि उदय आवे है, सो दुःख है। - टीका-जाकारण" ए अध्यवसान आदि समस्त भाव हैं तिनिका उपजावनेवाला आठप्रकार " ज्ञानावरण आदि कर्म है, सो समस्तही पुद्गलमय है, पेसैं सर्वज्ञका वचन है। तिस कर्मका उदय 5 + हदकू पहुंचे ताका फल है सो यह अनाकुलस्वरूप जो सुखनामा आत्माका स्वभाव, तातें विलक्षण
है, आकुलतामय है, तातें दुःख है। तिस दुःखके मांही आप पडे जे अनाकुलतास्वरूप अध्यवसान 卐 आदिक भाव, ते भी दुःखही हैं । तातें ते चैतन्यतें अन्वयका विभ्रम उपजावै हैं, तौऊ ते आत्माके के
स्वभाव नाहीं हैं, पुद्गलस्वभाव ही हैं।
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