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फ सर्वही मूलतें छोडिकरिअर प्रगटपणे अपने fचच्छक्तिमात्र भावकूं अवगाहन करि अर यह समस्त पदार्थ समूह जो लोक ताकै उपरि प्रवर्तता संता है, ताका साक्षात् अनुभव करो। कैसा है 5 5 यह ? अनंत है, अविनाशी है ।
भावार्थ - यह आत्मा परमार्थतें समस्त अन्यभावनि रहित चैतन्यशक्तिमात्र है, ताका अनु
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ataraरण करनारा है। बहुरि भेदज्ञानी जीवनिकं सोप्या है अपना सर्वस्व जानें ऐला है । बहुरि समस्त ही लोकालोककूं ग्राही (सी) भूतकरि अर अत्यंत सुखिया मंथर होय, तैसें सर्व कालमें किंचिन्मात्र भी चलायमान नाहीं होता है। बहुरि अन्य दुव्यनित साधारण नाहीं है, तातें असाधारण स्वभावभूत है । ऐसा चैतन्यरूप परमार्थस्वरूप जीव है, सो यह भगवान् निर्मल है प्रकाश जाका ऐसा इस लोकमें टंकोत्कीर्ण भिन्न ज्योतीरूप विराजमान है। अब इसही अर्थका 15 कलशरूप काव्य कहि याके अनुभवनकी प्रेरणा करे हैं ।
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मारिनोछन्दः
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Reef farmar चिच्छतिरिक्त स्फुटतर नवगाथ स्वं च चिच्छक्तिमात्रं । sageरि चरतं चारुविश्वस्य साक्षात् कव्यतु परमात्मात्मानं ॥३॥
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अर्थ-भव्य आत्मा है सो अपने एक केवल आत्माकूं आताही विषै अभ्यास करो, अनुभव
करो । कैसा आत्माका अनुभव करो ? जो सकल ही चिच्छक्तितें रीतै रहित अन्यभाव हैं तिनिकूं 45
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भवका अभ्यास करौ, ऐसा उपदेश है। आगें चिच्छक्तितें अन्य जे भाव हैं, ते सर्व पुगलद्रव्यसंबंधी हैं। ऐसी अगिली गाथाकी सूचनिकारूप श्लोक कहे हैं ।
अनुष्टुप् छन्दः
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चिच्छतिव्याप्तसर्वस्वस्वसारो जीव इयानयं । अतोतिरिक्ताः सर्वेषि भावाः पौद्गलिकाअमी ||४|| अर्थ-यह जीव है सो चैतन्यशक्तिकरि व्याप्त है सर्वस्वसार जाका ऐसा एतावन्मात्र है,
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इस चिच्छक्त ते जे भाव हैं ते सर्वही पुद्गलजन्य हैं ते पुद्गलके ही हैं । ऐसें तिनिभावनिका व्याख्यान छह गाथामें करे । गाथा
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