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समय १२८
सों पर भावकूं परके कहे हैं। बहुरि निश्चयनय है सो द्रव्यके आश्रय है, सो केवल एक जीवका स्वाभाविक भावकूं अवलंबन कर प्रवतें है, सो सर्व ही परभावकू परके नाहीं कहे है प्रतिषेध करे 5 फ है, तातें वर्णकूं आदि लेकरे गुणस्थान तांई जे नाव हैं, ते जावक हैं ऐसे व्यवहारकरि कहिये है । बहुरि निश्चयनयकरि जीवके एनाही हैं ऐसें कहिये है । ऐसें भगवानकी कथनी स्याद्वादकरि युक्त है। आगे फेरि पूछे है, जो ए वर्णादिक जीवके निश्चयकरि काहेतें नाही हैं ? ताका हेतु 45 कहो । ऐसें पूछे उत्तर कहे हैं । गाथा
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एदेहिय संबंधो जहेव खीरोदयं मुणेदव्वो । णय हुंति तस्स ताणि दु उवओग गुणाधिगो जम्हा ॥५७॥ एतैश्च संबंधो यथैव क्षीरोदकं ज्ञातव्यः ।
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न च भवति तस्य तानि तूपयोगगुणाधिको यस्मात् ॥५७॥
आत्मख्यातिः - यथा खलु सलिलमिश्रितस्य क्षीरस्य सलिलेन सह परस्परावगाहलक्षणे संबंचे सत्यपि स्वलक्षणभूतक्षीरत्वगुणन्याप्यतया सलिलादधिकत्वेन प्रतीयमानत्वादग्नेरुष्णगुणेनेव सह तादात्म्यलक्षण संबंधाभावान्न निश्वयेन फ सलिलमस्ति । तथा वर्णादिपुद्गलद्रव्यपरिणाममिश्रितस्यास्यात्मनः पुद्गलद्रव्येण सह परस्परावगाद्दलक्षणे संबंधे सत्यपि स्वलक्षणभूतोपयोगगुणण्याप्यतया सर्वद्रव्येभ्योधिकत्वेन प्रतीयमानत्वात् अग्नेरुष्णगुणेनैव सह तादात्म्यलक्षणसंबंधाभावान्न निश्चयेन वर्णादिपुद्गल परिणामाः संति । कथं तर्हि व्यवहारो विरोधक इति चेत् ।
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अर्थ-इनि वर्णादि भावनिकरि जीवके जैसा डालके अर दूधकै एकक्षेत्रावगाह संयोग संबंध है 5 15 तैसा संबंध जानना । बहुरि ते तिस जीवकै नाहीं है । तातें जीव इनितें उपयोग गुणकरि अधिक है, इस उपयोग गुणकर न्यारा जाणिये है 卐
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'टीका -- जैसे जलकर मिश्रित जो दूध ताकै जलकर सहित परस्पर अवगाह है लक्षण जाका ऐसा संबंध होतें भी दूध अपना स्वलक्षणभूत दूधपणा गुण है व्याप्य जार्के तिसपणाकरि 5 जलतें अधिकपणाकरि प्रतीयमान है। तिसके अर दूधकै तादात्म्यस्वरूपसंबंधका अभाव है। जैसे