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अदुःखं नित्यमेवानाकुलस्वभाचो जीव एव । आपत्यामाकुलत्वोत्पादकस्य पुद्गलपरिणामस्य हेतुत्वा दुःख क फलाः खल्वास्रवाः, अदुःखफलः सकलस्यापि पुद्गलपरिणामस्याहेतुत्वाज्जीच एव । इति विकल्पानंतरमेव शिथिलितकर्मविपाको विघटितष नौघघटना दिगाभोग इव निरर्गलप्रसरः सहजबिज भमाणचिच्छक्तितया यथा यथा विज्ञानघनस्वभावो भवति तथा तथास्रवेभ्यो निवर्त्तते । यथा यथास्रवेभ्यश्च निवर्त्तते तथा तथा विज्ञानघनस्वभावो भवतीति । तावद्विज्ञान- 15 धनस्वभावो भवति यावत्सम्यगासवेभ्यो निवर्त्तते । तावदासूवेभ्यश्च निवर्त्तते यावत्सम्यग्विज्ञानघनस्वभावो भवदीति फ ज्ञानात्रनिवृत्योः समकालत्वं ।
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लाख उपजे है, ताकरि वृक्ष बंधे पीछे तिसके निमित्ततें वृक्षका घात होय, ऐसें बध्यघातक स्वभावक रूप जीवसहित निबद्ध हैं बंधे हैं अर विरुद्धस्वभाव हैं, तातें जीव ही नाहीं हैं । बहुरि आस्रव हैं 5 मृगीका रोग वेगकी ज्यों बघता जाय फेरि घटता जाय ऐसें अध्रुव हैं । बहुरि जीव है सो
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चैतन्यभावमात्र है, सो है । बहुरि आस्त्र हैं ते शीतदाह ज्वरका स्वभावकी ज्यौं अनुकमतें 5 उपजते हैं तातें अनित्य हैं । बहुरि जोव है सो विज्ञानघन स्वभाव है तातें नित्य है । बहुरि आस्व 卐 हैं ते अशरण हैं, जातें जैसें काम सेवनमें वीर्यका बंध छुटै तिस ही काल दारुण कामका संस्कार 4 है, सो क्षीण होय, काहूतें राख्या न जाय, तैसें उदयकाल आये पोछें, आलव क्षरि ही जाय 卐 राखे न जाय हैं, तातैं शरणरहित हैं । बहुरि जीव हैं सो अपनी स्वाभाविक चिच्छक्तिरूप आप
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ही करि रक्षारूप है, तातें शरणसहित है । बहुरि आस्रव 'सदा ही आकुलता स्वभावलिये हैं, तातैं दुःखरूप हैं । बहुरि जीव है सो सदा ही निराकुलस्वभावरूप है, तातें सुखरूप है। बहुरि फ आस्रव हैं ते आगामी कारमै आकुलताका उपजावनहारा पुद्गलपरिणाम के कारण हैं, तातें ते दुःखफल स्वरूप हैं । बहुरि जीव है सो समस्त पुद्गलपरिणामका कारण नाहीं है तातें दुःख फल
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अर्थ-ए आस्रव हैं ते जीवकरि सहित निबद्ध हैं, अधव हैं, अनित्य हैं तथा अशरण हैं, बहुरि दुःखरूप हैं दुःख ही जिनका फल है ऐसे ज्ञानी जानिकरि तिनि निवृत्ति करे है ।
टीका-ए आस्रव हैं ते लाक्षवृक्षको ज्यों वध्यघातक स्वभाव हैं। जैसें पीपल आदि वृक्षके 卐