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फ वायमात्मास्त्रययोर्भेदं जानाति तदैव क्रोधादिभ्य आस्रवेभ्यो निवर्त्तते । तेम्पोऽनियमानस्य पारमार्थिकतद्भेदज्ञानासिद्धेः । ततः क्रोधाद्याखव निवृत्यविनाभाविनो ज्ञानमात्रा देवाज्ञानजस्य पौद्गलिकम्य कर्मणो घनिरोधः स किं न यदिदमात्मावयोर्भेदज्ञानं ज्ञानं किंवा ज्ञानं १ यद्यज्ञानं तदा तदनेनात्र तस्य विशेषः । ज्ञानं चेतु किमासनिवृत्तं । स प्रवृत्तं तदिज्ञानान्न तस्य विशेषः । आसवेषु निवृनं चतहि 5 कथं न ज्ञानादेव वैधनिरोधः इति नि ज्ञातयः क्रियानयः । यचात्मानमपि नावे निवृत्तं भवति
प्रवृत्तं किंवा
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समय
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तज्ज्ञानमेव न भवतीति ज्ञानांशी ज्ञाननयोपि निरस्तः ।
नका अशुचिणा बहुरि विपरीतपणा बहुरि एदुःखके कारण हैं ऐसें जानि 5 यह 'जीव तिनि निवृत्ति करे हैं
अर्थ -
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टीका - ए आल हैं ते अनुचि नलिन हैं, जाते जैसे जलविरें जंवाल कहिये सेवाल है सो मलिन है, जलकूं मलिन दिखाये है। तेलें ए आल भी कम जोगिताकरि प्राप्यमाण हैं, आप नलिन हैं, आत्माकूं मलिन अनुभव करावे हैं । बहुरि आता है सो भगवान् है ज्ञानवान् है, सो जो चैतन्य भाव ताकरिता ज्ञायक है । तातें अत्यंत शुचि है 卐 पवित्र है उज्वल है । बहुरि आसूत्र हैं ते आता अन्य स्वभाव हैं, क्षेत्र हैं, जातें जडस्वभावपणा के 5 होते परकरि जानने योग्य हैं। जेड होय ते आपकू न जाने तिनिकू पैलाही जाने । अर आत्मा है 5
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सो सदा ही विज्ञान घन स्वभाव है तातें आप चेतक है, ज्ञाता है, आसूवनित अन्यस्वभाव है,
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आपकूं अर पर जाने है । बहुरे आसून हैं ते दुःखके कारण हैं, तातें ए आलाके आकुलताके उपजावनहारे हैं । बहुरि भगवान् आत्मा है सो सदाही निराकुप्रभाव है, तातें काहूका कार्य 卐 नहीं है तथा काहूका कारण भी नाहीं है, तातें दुःखका कारण नाहीं है । ऐसे आत्माकै अर 5 आसूत्रके तीन विशेषणनिकरि भेद देखनेकरि जिसकाल भेद जान्या तिसही काल क्रोधादिक आख卐 होय हैं । बहुरि तिनि आस्रवनित निवर्तमान न होय ताकै पारमार्थिक सांची भेदफ्र ज्ञानकी सिद्धि न होय है । तातें ऐसें है जो कोधादिक आस्रवनिकी निवृत्ति अविनाभावी जो ज्ञान तिसमात्रतें ही अज्ञानतें भया जो पौद्गलिककर्मका बंध, ताका निरोध सिद्ध होय है । इहीं
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