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रहित निराकुल है। इहां धीर उदात्त अनाकुल विशेषण हैं, सो ए शांतरूप नृत्यके मामूषण जानने, ऐसा ज्ञान विलास करे है। ___भावार्थ-यह ज्ञानकी महिमा करि, सो जीव अजीव एक होय रंगभूमिमें प्रवेश करे हैं। तिनि• यह ज्ञान ही भिन्न जाने है। जैसे कोई नृत्यमें स्वांग आवै ताकू यथार्थ जाने ताकू स्वांग । करनेवाला नमस्कार करी, अपना रूप जैसाका तैसा करी ले, तैसें इहां भी जानना। ऐसा ज्ञान सम्यम्दृष्टि पुरुषनिके होय है, मिथ्यादृष्टि यह भेद जाने नाहीं। आगें जीव अजीवका एकरूप वर्णन करे हैं। ताकी गाथा
अप्पाणमयाणंता मूढा दु परप्पवादिणो केई। जीवं अज्झवसाणं कम्मं च तहा परूविति ॥३९॥ अवरे अज्झवसाणे सुतिव्वमंदाणुभावगं जीवं । मण्णंति तहा अवरे णोकम्मं चावि जीवोत्ति ॥४०॥ कम्मस्सुदयं जीवं अवरे कम्माणुभागमिच्छति। तिव्वत्तणमंदत्तण गुणहिं जो सो हवदि जीवो वा ॥४॥ जीवो कम्म उहयं दोण्णिवि खलु केवि जीवमिच्छति। अवरे संजोगेण दु कम्माणं जीवमिच्छति ॥४२॥ एवंविहा बहुविहा परमप्पाणं वदंति दुम्मेहा । ते ण दु परप्पवादी णिच्छयवादीहिं णिदिठा ॥४॥
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