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दर्शनशानमय है, अरूपी ई, निश्चयकार सदाकाल ऐसा हूं, अन्य परद्रव्य परमाणुमात्र भी मेरा किछू नाहीं है यह निश्चय है।
टोका-नाम कहिये सत्यार्थपणे निश्चयकरि ऐसा है। जो यह आत्मा अनादि मोहरूप ॥ ..२- अज्ञानते उन्मत्तपणाकरि अत्यंत अप्रतिबुद्ध अज्ञानी था, सो यापरि असुरागी जो गुरु ताकरि निरं
तर प्रतिबोध्या हुवा, कोई प्रकार बडा भाग्यतै समस्या सावधान भया, तब “जैसे काहूके हातविर्षे ॥ मुठीमै धरया हुआ सुवर्ण था सो भूलि गया फेरि यादिकरि देखें" तिस न्यायकरी अपना परमेश्वर .. सर्वसामथ्र्यका धरानेवाला आत्माकू भूलि रहा था, सो जाणिकरि, ताका श्रद्धानकरि,अरताहीका आचरणरूप तिसते तन्मय होयकरि भलैप्रकार आत्माराम हवा, तब ऐसे जोन्या-जो मैं चैतन्य- - मात्र ज्योतीरूप आत्मा हूं, सो मेरे ही अनुभवकार प्रत्यक्ष जानूं हं, जो साल काल्प अर अक्रम
रूप प्रवर्तते जे व्यावहारिक भाव तिनिकरि चिन्मात्र आकारकारे तो भेदमन भया हूं तात मै - 1- एक है। बहुरि नर नारक आदि जीवके विशेष अर अजोत्र, पुज्य, पाप, आत्रक, संवर, 'निर्जरा,
बंध, मोक्षलक्षण जे व्यावहारिक नवतत्त्व, तिनितें टंकोत्कीर्ण जो एक ज्ञायकस्वभावरूप भाव, + ताकरि अत्यंत जुदापणातें मैं शुद्ध हूं। बहुरि चिन्मात्रपणातें सामान्य विशेष जो उपयोग, ताकूनाही उल्लंघनेते, मैं दर्शनज्ञानमय हूं। बहुरि स्पर्श, रस, गंध, वर्ण हैं निमित्त जाकू ऐसा जो संवेदन,' तिसरूप परिणम्या हूं। तौऊ स्पर्श आदि रूप ससा आगहो परिग में परमात सदा ही अरूपी .. हूं। ऐसे सर्वते न्यारा ऐसा स्वरूपकू अनुभवता संता में प्रतापसहित है। ऐसें प्रतापरूप होतेके । मेरे वाह्य अनेकप्रकार स्वरूपकी संपदाकरि समस्त परद्रव्य स्फुरायमान हैं। तौऊ मोकू परद्रव्य + परमाणुमात्र भी किछु अपने भावकरि नाहीं प्रतिभाले हैं, जो मेर भावकरमाकर तथा शेषपगा- " करि मोते एक होयकरि फेरि मोह उपजावें । जातें मेरे निजरलने हो ऐला महान् ज्ञान प्रगट है भया है, जानें मोहकू मूलते उपाडिकरि दुरि किया है, जो फेोरे जाका अंकुर नाहीं उपजे ऐसा नाश किया है।
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