________________
ज卐
$
$
$
$
5
सकलकालमेव स्वयमेवानुभूयमानेपि भगवत्यनुभूत्यात्मन्पनादिबंधवशात् परैः सममेकत्वाव्यवसायेन विमूडस्यायमहमनुभूतिरित्यात्मज्ञानं नोलवते तदभावादनानखरगश्रद्वानसमानत्वाच्छ्रद्धानमपि नोत्ववते तदा समस्तभावांतरविदेकेन 卐. निःशंकमेव स्थातुमशक्यत्वादात्मानुचरणमनुत्युवमानं नात्मानं साधयतीति साध्यसिद्धरन्यथानुपपचिः।
अर्थ-जैसे कोई पुरुष धनका अर्थी राजाकू जाणिकरि श्रद्धान करे, तापीछे ताकू बहुत यसकरि । अनुचरे, ताकी नीकै सेवा करै। ऐसे ही मोक्षका अर्थी पुरुषकरि जीवनामा राजापू जानना, पीछे तैसे ही ताका श्रद्धान करना, पीछे ताका अनुचरण करना, अनुभवकरि तन्मय होना।
टीका-निश्चयकारे जैसे कोई धनकी अर्थी पुरुष बडा उद्यमकरि प्रथम तो राजाकू जाने, जो ॥ यह राजा है। पीछे तिसहीका श्रद्धान करै, जो यह अवश्य राजा ही है, याका सेवन कीये अवश्य धनकी प्राप्ति होयगी। पीछे तिसहीका अनुचरण करे, सेवन करे, आज्ञामै प्रवर्ते, वाकू प्रसन्न ॥ करै । तैसें ही मोक्षका अर्थी पुरुषकरि प्रथम तौ आत्माकू जानना, पीछे तिसका श्रद्धान करना, जो यहही आत्मा है, याका आचरण कीयें अवश्य कर्मनितें छुटियेगा, पीछे तिसहीका अनुचरण, करना, अनुभवकरि तामें लीन होना । जाते साध्य जो निष्कर्मावस्थारूप अभेदशुद्धरूप, ताकी ।। ऐसेंही सिद्धि है अन्यथा अनुपपत्ति है। तहां जिसकाल आत्माके अनुभवमें आवते जे अनेक । पर्यायरूप भेदभाव, तिनिकरि संकर कहिये मिश्रितपणा होते भी, परमविवेक कहिये सर्वप्रकार के भेदज्ञान, प्रवीणपणाकरि यह अनुभूति है, सो ही मैं हूं। ऐसा आत्मज्ञानकरि प्राप्त होता यह " आत्मा जैसें जाण्या तैसा ही है, ऐसी प्रतीति है लक्षण जाका ऐसा श्रद्धान उदय होय है।' तिस ही काल समस्त अन्यभावका भेद होनेकरि निःशंक ठहरनेकू समर्थ होनेते आस्माका आचरण उदय होता संता आत्माकू साधे हैं। ऐसे तौ साध्य आत्माकी सिद्धि की, तथा उपपत्ति है तैसें ही होय ताकू तथा उपपत्ति कहिये । बहुरि जिस काल ऐसा अनुभूतिस्वरूप भगवान् आत्मा बाल (गोपाल)ताई सदाकाल आपही अनुभवमैं आवतै संते भी अनादि बंधके । कशते परद्रव्यनिसहित एकपणाके अध्यवसाय कहिये निश्चयकरि मूढ जो अज्ञानी ताके यह अनुज
5
5
5
折
$
$