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म ___अर्थ-जो इंद्रियनिकू जीतिकरि ज्ञानस्वभावकरि अन्यद्रव्यत अधिका आत्माकू जाने है. उप... ता जितेंद्रिय ऐसा; जे निश्चवनयवि तिष्ठे साधु हैं, ते कहे हैं।
____टीका--जो मुनि द्रव्येंद्रिय तथा भावेदिय तथा इंद्रियनिक विषयनिक पदार्थ इनि तीनीहीकू 5 आपते न्याराकरि अर समस्त अन्यद्रव्यनितें भिन्न आत्माकू अनुभव है, सो निश्चयकरि जितेंद्रिय " है। कैसे हैं द्रव्येंद्रिय ? अनादि अमर्यादरूप जो बन्धपर्याय, ताके कशकरि, अस्त भया है समस्त
स्वपरका विभाग जिनिकरि । बहुरि कैसे हैं ? शरीरपरिणाम प्राप्त भये हैं । भावार्थ-आत्माते । ऐसे एक होय रहे हैं, जो भेद नाही दीखें है। तिनिळू तो निर्मल जो भेदका अभ्यासका प्रवीणपणा, ताकरि पाया जो अंतरंगविर्षे प्रगट अतिसूक्ष्म चैतन्यस्वभाव, ताका अवलंबन, ताके बल-ज करि आपते न्यारे किये है, यह ही जीतना । बहुरि कैसे हैं भावेंद्रिय ? न्यारे न्यारे विशेषनिकू
लिए जे अपने विषय तिनिविर्षे व्यापारपणाकरि विषयनिक खंड-खंड ग्रहण करते हैं। भावार्थ-4 म ज्ञानकू खंड-खंडरूप जगावे हैं । तिनि प्रतीतिमैं आवती जो अखंड एक चैतन्यशक्ति, ताकार
आपते न्यारे जाने है, इनिका एही जीतना । बहरि कैसे है इंद्रियनिक विषयभूत पदार्थ ? ग्राह्य卐 ग्राहकलक्षण जो संबंधी ताकी निकटताके वशकार अपने संवेदन अनुभवकार सहित परस्पर एकले ।।
होय दीखे हैं, तिनिकू अपनी चैतन्यशक्तिके आपही अनुभवमैं आवता जो असंगपणा अमिलमिलाप ताकरि भावेंद्रियनिकरि ग्रहे हुये जे स्पादिकपदार्थ, तिनि... आपते न्यारे किये हैं, इनिका एही जीतना । ऐसें इंद्रियज्ञानकै अर विषयभूत पदार्थनिक यज्ञायकका संकरनामा दोष आवै था, ताके दूरि होनेकरि आत्मा एकपणावि टंकोत्कीर्ण ठहयां । जैसे टाकीकार उकीरी पाषा-5 पविक मूर्ति एकाकार जैसीकी तैसी ठहरै, तैसें ठहरथा। सो यह काहै करि ऐसा जान्या ? .. समस्तपदार्थ निके तो उपरि तरता जानता संता भी तिनिरूप नाहीं होता अर प्रत्यक्ष उद्योतपणा- ht और नित्य ही अंतरगविर्षे प्रकाशमान र अनपायी अविनश्वर अर. आपहीते सिद्ध भया अर, परमार्थरूप ऐसा भगवान् जो ज्ञानस्वभाव ताक़रि-सर्व अन्यद्रव्यते परमार्थ से जुदा जान्या, जात
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