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जदि जीवो ण सरीरं तित्थयरायरियसंथुदी चैव। सव्वावि हवदि मिच्छा तेण दु आदा हवदि देहो ॥२६॥ ...
यदि जीवो न शरीरं तीर्थकराचार्यसंस्तुतिश्चैव ।
___सर्वापि भवति मिथ्या तेन तु आत्मा भवति देहः ॥२६॥ आत्मख्यातिः–यदि य एवात्मा तदेव शरीरं पुद्गलद्रव्यं न भवत्तदा । ...
अर्थ-अप्रतिबुद्ध कहे हैं, जो जीव है सो शीर नाहीं है, तो तीर्थकर अर आचार्य इनिकी 5 + स्तुति करी है सो सर्वही मिथ्या होय है झूठी होय है। तिस कारणकरि हम जाने है आत्मा यह .. ऊ टीका-जो ही आत्मा है सोही पुद्गलद्रव्यस्वरूप यह शरीर है। ऐसें नाहीं होय तो तीर्थकर आचार्यनिकी ऐसी स्तुति करी है सो सारी मिथ्या होय । सो स्तुति कैसी है ताका काव्य है। "
शार्दूलविक्रीडितच्छन्दः कान्त्येव स्नपयन्ति ये दशदिशी धाम्ना निरुन्धन्ति ये धामोदाममहस्विनां जनमनो मुष्णन्ति रूपेण ये।। दिम्येन धनिना सुखं श्रवणयोः साक्षात्क्षरन्तोऽमृतं बन्धास्तेऽष्टसहस्रलक्षणधरास्तीर्थेश्वराः सूरयः॥
इत्यादिका तीर्थकराचार्यस्तुतिः समस्तापि मिथ्या स्पात ततो य एवात्मा तदेव शरीरं पुद्गलद्रन्यमिति ममैकातिकी 卐 प्रतिपत्तिः नैवं नयविभागानभिज्ञोसि ।
अर्थ-ते तीर्थकर आचार्य वंदिवे योग्य हैं । केसे हैं ते ? अपनी देहकी कांतिकरि तौ दशदिशानिकू स्नपन करे हैं, धोवे हैं, निर्मल करे हैं। बहुरि अपने तेजकरि तेजते उत्कृष्ट जो सूर्या-卐 दिक तेजस्वी तिनिका तेजकू रोके हैं। बहुरि ते रूपकरि लोकनिक मनकू हरे हैं । बहुरि दिव्य
ध्वनिवाणीकरि काननविर्षे साक्षात् सुख अमृत वर्षावे हैं। बहुरि एक हजार आठ लक्षणनिको " ए धारे हैं ऐसे हैं । इत्यादिक तीर्थकर आचार्यनिको स्तुति है। सो सर्वही मिथ्या ठहरे है। ताते ।।
हमारे तो यह ही एकांतकरी निश्चयप्रतिपत्ति है, जो आत्मा है सोही शरीर है पुगलद्रव्य है, ऐसा ।
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