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9 भूति है । सो मैं हूं ऐसा आत्मज्ञान नाहीं उदय होय है। ताके अभावतें विना जाणेका श्रद्धान मया- गधाके सिंगसारिखे होय है । ऐसें श्रद्धान भी नाहीं उदय होय है । तिस काल समस्त अन्यभाव
निका भेद न होनेकरि निशंक आत्मावि तिष्ठनेका असमर्थपणातें आत्माका आचरण न होता. संता आत्माकू नाहीं साधे है ऐसे साध्यआत्माकी सिद्धिकी अन्यथाअनुपपत्ति है । और प्रकारकरि ..
न होय ताकू अन्यथानुपपत्ति कहिये। 9 भावार्थ-साध्य आत्माकी सिद्धि दर्शनज्ञानचारित्रहीकरि है, अन्यप्रकार नाहीं है जातें
पहले तो आत्माकू जाणै, जो यह जाननहारा अनुभवमें आवे है सो में हूं पीछे याकी प्रतीतिरूप " श्रद्धान होय विनाजाणे श्रद्धान काहेका ? बहुरि पीछे समस्त अन्यभावनित भेदकर आपवित्रं । थिर होय ऐसी सिद्धि है। बहुरि जब जाणे नाहीं तब थिरता कौनमें करें ? तातें अन्यप्रकार सिद्धि नाहीं है, ऐसा निश्चय है । अब इसही अर्थका कलशरूप काव्य कहे हैं।
मालिनीछन्दः कथमपि समुपानत्रित्वमप्येकताया अपतितमिदमात्मज्योतिरगच्छदच्छम् ।
सततमनुभवामोनन्नचैतन्यचिद न खलु न खलु यस्मादन्यथा साध्यसिद्धिः ।। २०॥ ननु ज्ञानतादात्म्यादात्मात्मानं नित्यमुपास्त एव कुतबदुपास्यत्वेनानुशास्यत इति चेन्न यतो न खल्वात्मा ज्ञानतादा卐 त्म्येपि क्षणमपि ज्ञनमुपास्ते स्वयं चुबोधितयुद्धत्वकारणपूर्वकत्वेन ज्ञानस्योत्पत्त: । तर्हि तत्कारणात्पूर्वमज्ञानएवात्मा !
नित्यमेवाप्रतिबुद्धत्वादेवमेतत् । तर्हि कियंतकालमयमप्रतिबुद्धो भवतीत्यभिधीयतां। ____ अर्थ-आचार्य कहे हैं, जो यह आत्मज्योति है, ताहि हम निरंतर अनुभवे हैं। कैसा है ? अनंत अविनश्वर जो चैतन्य सो है चिह्न जाका, काहेते अनुभवे हैं ? जाते याके अनुभवविना ..
अन्यप्रकार साध्य आत्माकी सिद्धि नाहीं है। कैसा है यह आत्मज्योति ? कथंचित्प्रकार अंगीकार । 卐 किया है तीनपणा जानें, तौऊ एकपणातें च्युत न भया है। बहुरि कैसा है ? निर्मल जैसे होय
तैसें उदयकू प्राप्त होता है।
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