________________
कफ क
卐
अर्थ -- यह आत्मा मेचक है, भेदरूप अनेकाकार है, तथा अमेचक है, अभेदरूप एकाकार है। फ
समय ऐसी चिंताकरि तो पूरि पडो, साध्य आत्माकी तो सिद्धि है सो दर्शन ज्ञान चारित्र इनि तीनि भावनिकर ही है, अन्यप्रकार नाहीं है यह नियम है ।
६
भावार्थ- आत्माकी शुद्धद्रव्यार्थिकनयकरि सिद्धि भई ऐसा शुद्धस्वभाव साध्य है, सो पर्या
यार्थिकस्वरूप व्यवहारनयहीकरि साधिये है, तातें ऐसें कया है, जो भेदाभेदकी कथनी करि,
卐
कहा? जैसे साध्यकी सिद्धि होय तैसें करना व्यवहारी जन पर्यायहीमैं समझे हैं तातें दर्शनज्ञान फ
卐
5
卐
卐
卐
卐
卐
5
चारित्र तीन परिणाम हैं सोही आत्मा है । ऐसें भेदप्रधानकरि अभेदकी सिद्धि करनी कही । आगे इसी प्रयोजन गाथा दोय दृष्टांतकार कहे हैं। गाथा
फ्रफ़ फफफफफफ
जह णाम को वि पुरिसो रायाणं जाणिऊण सद्दहदि । 卐 तो तं अणुचरदि पुणो अत्थत्थीओ पयत्तेण ॥१७॥
एवं हि जीवराया णादव्वो तह य सद्दहे दव्यो ।
अणुचरिदव्वो य पुणो सो चेव दु मोक्खकामेण ॥ १८ ॥ फ्र
卐
यथानाम कोपि पुरुषो राजानं ज्ञात्वा श्रद्दधाति । ततस्तमनुचरति पुनरर्थार्थिकः प्रयत्नेन ॥ १७॥ एवं हि जीवराजो ज्ञातव्यस्तथैव श्रद्धातव्यः । अनुचरितव्यश्च पुनः स चैत्र तु मोक्षकामेन ॥ १८॥
卐
आत्मख्यातिः—यथा हि कश्चित्पुरुषोऽर्थार्थी प्रयत्नेन प्रथममेव राजानं जानीते ततस्तमेव श्रद्धचे ततस्तमेवानुचरति ।
तथात्मना मोक्षार्थिना प्रथममेवात्मा ज्ञातन्यः तत स एव श्रद्धावन्यः ततः स एवानुचरितन्यश्च साध्यसिद्धेस्तथान्यथोप
पत्त्यनुपपत्तिभ्यां । तत्र यदात्मनोनुभूयमानानेकभावसंक रेपि परमविवेककौशलेनायमहमनुभु तिरित्यात्मज्ञानेन संगच्छ
मानमेव तथेविप्रत्ययलक्षणं श्रद्धानं चरणमुत्प्लवमानमात्मानं साधयतीति साध्यसिद्धेस्तथोपपत्रेः यदात्वाबालगोपालमेव
卐
卐