________________
:
+
मय
+
+
+
+
+
+
+
+
+
आत्मख्यातिः-येयमवहस्पृष्टस्यानन्यस्प नियतस्य विशेषस्थासंयुक्तस्य चात्मनोनुभूतिः सा सल्व खिलस्य जिनशासनस्यानुभूतिः श्रुतज्ञानस्य स्वयमात्मत्वात्ततो ज्ञानानुभूतिः खात्मानुभूतिः किंतु तदानीं सामान्य विशेषाविर्भाव-भा तिरोभावाभ्यामनुभूयमानमपि ज्ञानमबुद्धलुब्धानां न स्वदते । तथाहि-पया विचित्रव्यंजनसंयोगोपजातसामान्य विशेष- .. तिरोभावाविर्भावाभ्यामनुभयमान लवणं लोकानामधान धानां बदते न पुनरन्यसंयोगशून्यतोपजातसामान्य विशेषाविर्भावतिरोभावाम्यां । अथ च यदेव विशेषाविर्भावनानुभूयमानं लवणं तदेव सामान्याविभावेनापि तथा विचित्र- .. झयाकारकरक्तित्वोपजातसामान्यविशेषतिरोभावाविर्भावाभ्यामनुभयमानं ज्ञानमत्रुद्धानां ज्ञेयलुब्धानां स्वदते न पुनरन्यसंयोगशून्यतोपजातसामान्य विशेषाविर्भावतिरोभावाभ्यो। अथ च यदेव विशेषाविर्भावनानुभूयमानं ज्ञानं तदेव सामान्या. विर्भावनाप्यलुब्धवृद्धानां यथा सैंधवखिल्योन्यद्रव्यसंयोगाव्यच्छेदेन केवल एवानुभयमानः सर्वतोप्येकलवणरसत्वाल्लवणत्वेन 1 स्वदते तथात्मापि परद्रव्यसंयोगन्यवच्छेदेन केवलएवानुभूयमानः सर्वतोप्येक विज्ञानघनत्वात् ज्ञानत्वेन स्वदते। ___ अर्थ-जो पुरुष आत्माकू अवद्धस्टष्ट अनन्य अविशेष इहां उपलक्षणतें पूर्वोक्त नियत असंयुक्त ए॥ दोऊ विशेषणभी लेना ऐसा देखे है, सो सर्वजिनशासनकू देखे है। कैसा है जिनशासन ? अपदेश कहिये वाह्यद्रव्य श्रुत बहुरि सान्त कहिये ज्ञानरूप अभ्यन्तर भावभुत ए दोऊ हैं मध्य जाके ऐसा है। ___टीका-जो यह अबद्धस्पृष्ट अनन्य नियत अविशेष असंयुक्त ऐसे पांचभावस्वरूप आत्माकी
अनुभूति सोही निश्चयकरि समस्त जिनसासनकी अनुभूति है। जाते श्रुतज्ञान है सो आपके __ आत्माही है , तातें यह आपा जो आत्माकी अनुभूति है सोही ज्ञानकी अनुभूति है। इहां यह ।।
विशेष है, जो, सामान्यज्ञानका तो आविर्भाव कहिये प्रगटपणा अर विशेष ज्ञेयाकारज्ञानका + तिरोभाव कहिये आच्छादितताकरि ज्ञानमात्रही जब अनुभवकरिये तब ज्ञान प्रगट अनुभवमैं - आवे है। तोऊ जे अज्ञानी हैं अर शेयनिविषे लुब्ध कहिये आसक्त हैं तिनिकू स्वादरूप न होय । 卐 है, सोही प्रगट दृष्टांतकरि दिखावें । जैसे अनेकप्रकारके व्यञ्जन कहिये तरकारी आदि भोजन,' - तिनिके संयोगकरि उपना सामान्य लूणका तौ तिरोभाव अर विशेष लूणका आविर्भाव, ताकरि ..
अनभव आषता जो सामान्यलणका तिरोभाव लण, सोही जे अज्ञानी अर व्यजनविलुब्ध ऐसें ।
+
+
+
+
+
+