________________
Li
ககதத5********
卐
卐
卐
5 बलपुरुषार्थतें न्यारा करि अंतरंगविर्षे अभ्यास करे देखे तो यह आत्मा अपने अनुभवही करि जाननेयोग्य है प्रगट महिमा जाकी ऐसा व्यक्त अनुभवगोचर निश्चल शाश्वत नित्य कर्मकलंककर्दम रहित ऐसा आप स्तुति करनेयोग्य देव तिष्ठे है ।
卐
भावार्थ -- शुद्धनकी दृष्टिकरि देखीये तौ सर्वकर्मनितें रहित चैतन्यमात्र देव अविनाशी आत्मा अंतरंग विषै आप विराजे है । यहू प्राणी पर्यायबुद्धि बहिरात्मा याकूं बाह्य हेरे है सो बडा 5 अज्ञान है । आगे शुद्धयका विषयभूत आत्माकी अनुभूति है सोही ज्ञानकी अनुभूति है ऐसा आगली गाथाकी सनिकाके अर्थरूप काव्य कहे हैं ।
1
卐 卐
वसन्ततिलका छंद
आत्मानुभूतिरिति शुद्वनयात्मिका या, ज्ञानानुभूतिरियमेव किलेति बुबुध्वा ।
आत्मानमात्मनि निवेश्य सुनिन्प्रकम्प मे कोऽस्ति नित्यमवबोधधनः समन्तात् ॥ १३ ॥
६२. फ्र 5
卐
卐
फ्र 5
फफफफफफफफफ
फ्र
अर्थ -- ऐसें जो पूर्वोक्तशुद्वनयस्वरूप आत्माकी अनुभूति कहिये अनुभव है सोही यह ज्ञानकी अनुभूति है ऐसें प्रगट जानकारि, बहुरि आत्माविषै आत्माकूं निश्चय स्थापिकरि, अर सदा सर्वतरफ एक ज्ञानघन आत्मा है ऐसा देखना ।
卐
卐
भावार्थ — पहलें सम्यग्दर्शन प्रधानकरि कया था अब ज्ञानकूं प्रधानकरि कहे हैं। जो यह 5 शुद्धयका विषयस्वरूप आत्माकी अनुभूति है सोही सम्यग्ज्ञान है। इस अर्थरूप गाथा
कहै हैं गाथा -
जो पस्सदि अप्पाणं अबद्धपुढं अणण्णमविसेसं ।
अपदेससुतमज्यं पस्सदि जिणसासणं सव्वं ॥ १५॥ यः पश्यति आत्मानं अवद्वस्पृष्टमनन्यमविशेषं । अपदेश सूत्रमध्यं पश्यति जिनशासनं सर्वं ॥ १५ ॥
卐
卐