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+ एकान्तते आपबोधका बीजरूपस्वभाव जो चैतन्यभावरूप ताकू लेकरि अनुभवन करते सन्ते प्रय संयुक्तपणा अभूतार्थ है असत्यार्थ है। 卐 भावार्थ-आत्मा पांचप्रकारकरि अनेकरूप दीखे है प्रथम । तौ अनादिही कर्मपुद्गलके सम्बन्धते
बंध्या कर्मपुद्गलसूं स्पर्शरूप दीखे है । बहुरे कर्म के निमित्तते भये जे नरनारकादिपर्याय तिनिमें " 9 औरऔररूप दीखे है। बहुरि शक्तिके अविभागप्रतिच्छेद घटे हैं वधे हैं यह वस्तुस्वभाव है तातें 5
नित्यनियत एकरूप नाहीं दीखे है । बहुरि दर्शनज्ञान आदि अनेक गुणनिकरि विशेषरूप दीखे है।
बहुरि कर्मके निमित्ततें भये मोह, राग, द्वेषादिक परिणाम तिनिकरि सहित सुखदुःखरूप दीखे 卐 + है। सो यह तो सर्व अशुद्धद्रव्यार्थिकरूप जो व्यवहारनय ताका विषय है, सो ताकी दृष्टिकरि
देखीये तो सर्वही सत्यार्थ है, परंतु आत्माका एक स्वभाव या नयकरि ग्रहण होय नाही, अर एक+ स्वभाव जानेविना यथार्थ आत्माकू कैसे जाने ? तातें दूजा नय याकै प्रतिपक्षी जो शुद्ध द्रव्यार्थिक ।। 1. ताकू ग्रहणकरि एक असाधारण ज्ञायकमात्र आत्माका भाव लेकरि सर्व परद्रव्यनितें भिन्न सर्व ।
पर्यायनिमें एकाकार, हानिवृद्धि” रहित, विशेषनितें रहित नैमित्तिकभावनिते रहित, शुद्धनयकी - 1 दृष्टिकरि देखिये तब सर्वही पांचभावनिकरि अनेकप्रकारपणा है सो अभूतार्थ है असत्यार्थ है।
इहां ऐसा जानना, जो वस्तुका स्वरूप अनंतधर्मात्मक है, सो स्याद्वादतें यथार्थ सधे है। तहां 4 आत्माभी अनंतधर्मा है । ताके केतेक धर्म तौ स्वभाविक हैं अर केतकधर्म पुद्गलके संयोगते
होय हैं । तहां कर्म के संयोगते होय तिनिकरि आत्माके संसारकी होय, तिससंबंधी सुखदुःखादिक 卐 होय हैं, तिनिळू भोगवे है, सो याकै अनादि अज्ञानतें पर्यायबुद्धि है। अनादि अनंत एक आत्माका ।।
जान नाही, ताका जनावनहारा सर्वज्ञका आगम है, तामैं शुद्धद्रव्यार्थिकनयकरि जनाया है जो । 卐 आत्माका एक असाधारण चैतन्यभाव है सो अखंड है नित्य है अनादिनिधन है सो याकू जाने 1- पर्यायबुद्धिका पक्षपात कटे है । परद्रव्यनितें तथा तिनिके भावनितें तथा तिनिके निमित्ततें भये+ अपने विभावनितें आपाळू भिन्न जानि याका अनुभवन करे तव परद्रव्यके सम्बन्धी भावनिरूपण के
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