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अर्थ-आचार्य शुद्धनयका अनुभवकरि कहे हैं, जो इस सर्वभेदनिका गौण करनहारा जोक 卐 शुद्धनयका विषयभूत चैतन्यचमत्कारमात्र तेजःपुंज आत्मा ताके अनुभव आये सन्ते नयनिकी प.
लक्ष्मी है सो उदयकू नाहीं प्राप्त होय है। बहुरि प्रमाण है सो अस्तफँ प्राप्त होय है। बहुरि - . निक्षेपनिका समूह है सो कह जाता रहै है सो हम नाहीं जाने हैं। इस सिवाय और कहां कहे ॥
द्वैतही नाहीं प्रतिभासे है। ____ भावार्थ-भेदकू अस्थत गौण करि कह्या है जो प्रमाणनयादिकका भेदकी कहां चली है ? म ॐ शुद्ध अनुभव होते द्वैतही नाहीं भासे है, एकाकार चिन्मात्रही दीखे है। इहां विज्ञानाद्वैतवादी ।।
तथा वेदांती कहैं जो परमार्थ तौ अद्वैतहीका अनुभव भया सोही हमारा मत है, तुमने विशेष ॥ कहा कह्या ? ताकू कहिये जो तुमारा मतमैं सर्वथा अद्वैत माने है, सो सर्वथा माने तो बाह्यवस्तुका के अभाव होय है, सो ऐसा अभाव प्रत्यक्षविरुद्ध है । बहुरि हमारे नयविवक्षा है सो बाह्यवस्तुका लोप
नाहीं करे है । शुद्ध अनुभवतें विकल्प मिटे है, तब परमानंद• आत्मा प्राप्त होय है, तातें अनुभव ॥ 45 करावने ऐसा कह्या है । अर बाह्यवस्तुका लोप कीये तो आत्माकाभी लोप आवै तवशून्यवादका ..
प्रसङ्ग आवे है, सो तुम कहो तैसे वस्तुस्वरूप सधै नाही, अर वस्तुस्वरूपकी यथार्थश्रद्धा विना : जो शुद्ध अनुभवभी करे तो मिथ्यारूप है, शून्यका प्रसङ्ग आया तब आकाशके फूलका अनुभव . है । आर्गे शुद्धनयका उदय होय है ताकी सूचनिका काव्य कहे हैं।
उपजातिछन्दः। ___ आत्मस्वभावं परभावभिन्नमापूर्णमाद्यन्तविमुक्तमेकम् ।
विलीनसङ्कल्पविकल्पजालं प्रकाशयन् शुद्धनयोभ्युदेति ॥ १० ॥ __ अर्थ-शुद्धन्य है सो आत्माके स्वभावकं प्रगट करता सन्ता उदय होय है। कैसा प्रगट
करे है ! परद्रव्य तथा परद्रव्य के भाव तथा परद्रव्यके निमित्त भये अपने विभाव ऐसे परभाव+ नितें भिन्न प्रगट करे है। बहुरि कैसा प्रगट करे है ? आपूर्ण कहीये समस्तपणाकरि पूर्ण स्वभाव -
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