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करते संत भेद अभूतार्थ असत्यार्थ है । बहुरी निक्षेप है सो नाम स्थापना द्रव्य भाव भेदकार । चारिप्रकार है। तहां जामें जो गुन तौ न होय अर तिसके नाम वस्तुकी संज्ञा करीये सो तौ॥ नामनिक्षेप है। बहुरी अन्यवस्तुविर्षे अन्यकी प्रतिमारूप स्थापना करना जो यह वह वस्तु है सो .. यह स्थापनानिक्षेप है । वहुरी वर्तमानपर्यायतें अन्य अतीत, अनागत पर्यायरूप वस्तु होय ताकू वर्तमानवस्तुमैं कहिये सौ द्रव्यनिक्षेप है । बहुरी वर्तमानपर्यायरूप वस्तूकूही वर्तमान कहिये सो भावनिक्षेप है । सो ए चारोंही निक्षेप अपने अपने लक्षणभेदतें न्यारे न्यारे विलक्षणरूपकरि । अनुभवनकरि करते सन्ते भूतार्थ हैं सत्यार्थ हैं । वहुरि भिन्नलक्षण रहित एक अपना चैतन्य लक्षणरूप जीवके स्वभाव अनुभवन करते सन्ते चारोंही अभूतार्थ हैं असत्यार्थ हैं। ऐसे इनि" प्रमाणनयनिक्षेपनिविर्षे भूतार्थपणाकरि एक जीवही प्रकाशमान है। . भावार्थ-इहां इनि प्रमाणनयनिक्षेपनिका विस्ताररूप व्याख्यान इनिके प्रकरणके ग्रंथनिमें
है, तहांतें जानना । इनितें वस्तु द्रव्यपर्यायात्मक साधिये है। सो साधक अवस्थामैं तौ ए. ॥ सत्यार्थही है, जातें ए ज्ञानहीके विशेष हैं, इनिविना वस्तूकू यथाकथंचित् साधे तब विपर्यय होय
है । अवस्थाके व्यवहारके अभावकी तीन रीति हैं । एक तो यथार्थवस्तूकू जानि ज्ञानश्रद्धानकी, सिद्धि करना, सो ज्ञानद्धान सिद्ध भये पीछे इनि प्रमाणादिकतें श्रद्धानके अर्थि तो किछु ।
प्रयोजन नाहीं । बहुरि दूजी अवस्था, विशेषज्ञान अर रागद्वेषमोहकर्मका सर्वथा अभावरूप + यथाख्यातचारित्रका होना है, । याही केवलकी प्राप्ति है। सो यह भये पीछे प्रमाणादिकका 1- आलंबन नाहीं है । तापीछे तीसरी साक्षात् सिद्ध अवस्था है, सो तहां भी किछु आलंबन नाहीं है । ऐसें सिद्ध अवस्था में प्रमाणनयनिक्षेपनिका अभावही है । इस अर्थका कलशरूप काव्य है।'
मालिनीछन्दः उदयति न नयश्रीरस्तमति प्रमाणं क्वचिदपि च न विद्यो याति निक्षेपचक्रम् । किमपरममिदमो धाम्नि सर्वोऽस्मिन्ननुभवमुपयाते भाति न द्वैतमेव ॥ ६ ॥
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