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कीहैया, जैसें वर्णकी माला के समूहमें सुवर्णका एकाकार छिप्याकूं निकासे तैसे, सो अब भव्यसमग्र जीव याकों निरन्तर अन्यद्रव्यनितें तथा तिनितें भयो नैमित्तिकभावनितें भिन्न एकरूप अवलोकन करो । यहू पदपदप्रति कहिये पर्यायपर्यायप्रति एकरूप चिचमत्कार मात्र उद्योतमान है ।
भावार्थ - यह आत्मा सर्व अवस्थामै नानारूप दीखे था, सो शुद्धनय एक चैतन्यचमत्कारमात्र 5 दिखाया है । सो अब सदा एकाकारही अनुभवन करो पर्यायबुद्धिका एकान्त मति राखो यह श्रीगुरुनिका उपदेश है । अब टीकाकार फेरि कहे हैं, जो जैसें नवतत्वमें एक जीवहीका जानना क भूतार्थ का, तेही एकपणाकरि प्रकाशमान जो आत्मा ताका अधिगमके उपाय ये प्रमाणनयनिक्षेप हैं तेभी निश्चतें अभूतार्थ हैं। तिनिविषेभी यह एक आत्माही भूतार्थ है । जाते ज्ञेयके 5 अर वचनके भेद ते अनेक भेदरूप होय हैं। तहां प्रथमही प्रमाण दोयप्रकार है परोक्ष अर प्रत्यक्ष । तहां उपात्त कहिये इन्द्रियन्नितें भिडिकरि प्रवर्ते अर अनुपात कहिये बिना भिडे मनकरि 5 प्रवर्ते ऐसें दोय परद्वारकरि प्रवर्त्तमान सो परोक्ष । बहुरी केवल आत्माही कार प्रतिनिश्चितपणाकरि प्रवर्त्तमान होय सो प्रत्यक्ष है ।
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भावार्थ - प्रमाण ज्ञान है, सो ज्ञान पांचप्रकार है, मति, श्रुत, अवधि, मनःपर्यय, केवल । तिनिमैं तौ परोक्ष हैं । अर अवधि, मन:पर्यय विकलप्रत्यक्ष हैं । केवलज्ञान सकलप्रत्यक्ष है। सो
मति श्रुत
ये दौकी प्रमाण हैं । ते प्रमाता प्रमाण प्रमेयके भेदकूं अनुभवन करते सन्ते तौ भूतार्थ हैं,
卐 5 सत्यार्थ हैं । बहुरी गौण भये हैं। समस्त भेद जानें ऐसा जो एक जीवका स्वभाव ताका अनुभव करते सन्ते अभूतार्थ हैं असत्यार्थ है । बहुरि नय है सो द्रव्यार्थिक है, पर्यायार्थिक है। तहां वस्तु
है सो द्रव्यपर्यायस्वरूप है । तामैं द्रव्यकूं मुख्यपण करि अनुभवन करावे ऐसा तौ द्रव्यार्थिक है। 5 बहुरि पर्याय मुख्यपणाकरि अनुभवन करावे सो पर्यायार्थिक है । सो ए दोऊही नय द्रव्यपर्यायकू
5 भेदरूप पर्यायकार अनुभवन करते सन्ते तो भूतार्थ है सत्यार्थ है । बहरी द्रव्यपर्याय दोऊहीकू क नाहीं आलिंगन करता ऐसा शुद्ध वस्तुमात्र जो जीवका स्वभाव चैतन्यमात्र ताकूं अनुभवन, 卐
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