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टीका-जीवादिक नवतत्त्व हैं ते भूतार्थनयकरि जाणेसंते सम्यग्दर्शनही है यह नियम कह्या । जाते ये नवतत्त्व जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आस्त्रव, संवर, निर्जरा, बन्ध, मोक्ष है लक्षण जिनिका ऐसे तीर्थ जो व्यवहारधर्म ताकी प्रवृत्तिके अर्थ अभूतार्थनय जो व्यवहारनय ताकरि कहे हुये हैं। तिनिविर्षे एकपणा प्रगट करनहारा जो भूतार्थनय ताकरि एकपणाकू प्राप्त करी शुद्धपणाकरी स्थाप्या जो आत्मा ताकी आत्मख्याति है लक्षण जाका ऐसी अनुभूतिका प्राप्तपणा ॥ है। शुद्धनयकरि नवतत्त्वकू जाणे आत्माकी अनुभूति होय है इस हेतुतें नियम है । तहां विकार्य जो विकारी होनेयोग्य अर विकार करनेवाला विकारक एक दोऊ तौ पुण्य हैं। बहुरि ऐसेही विकार्य विकारक दोऊ पाप हैं। बहुरि आस्त्राव्य कहिये आस्रव होनेयोग्य अर आस्रावक कहिये आस्रव ।।
करनेवाला ए दोऊ आस्रव हैं। बहुरि संवार्य कहिये संवररूप होनेयोग्य अर संवारक कहिये 卐 संवर करनेवाला ए दोऊ संवर हैं। बहुरि निर्जरनेयोग्य अर निर्जरा करनेवाला ए दोऊ निर्जरा ,
हैं। बहुरि बन्धनेयोग्य अर बन्धनकरनेवाला ए दोऊ बन्ध हैं। बहुरि मोक्ष होनेयोग्य अर मोक्ष करनेवाला ए दोऊ मोक्ष हैं । जाते एकहीके आपहीतें पुण्य, पाप, आस्रव, संवर, निर्जरा, बन्ध मोक्षकी उपपत्ति बने नाहीं। ____ बहुरी ते दोऊ जीव अर अजीव हैं ऐसे ए नवतत्त्व हैं। इनिळू बाह्यदृष्टिकरि देखीये तब 5 जीवपुद्गलकी अनादिबन्धपर्यायकू प्राप्तकरि एकपणाकरि अनुभवन करते सन्ते तो ए नवही भूतार्थ । हैं सत्यार्थ हैं। बहुरि एक जीवद्रव्यहीका स्वभावकू लेकर अनुभवन करते सन्ते अभूतार्थ हैं।
असत्यार्थ हैं। जीवके एकाकार स्वरूपमें ये नाही हैं । तातें इनिका तत्त्वनिविर्षे भृतार्थनयकरिए __ जीव एकरूपही प्रकाशमान है, तैसें ही अन्तष्टिकरि देखीये तब ज्ञायकभाव तो जीव है। बहुरि
जीवकै विकारका कारण अजीव है । बहुरि पुण्य, पाप, आस्रव, संवर, निर्जरा, बन्ध, मोक्ष है 卐 लक्षण जाका ऐसा केवल एकला जीवका विकार नाहीं है। बहुरि पुण्य, पाप, आस्रव, संवर, .. निर्जरा, बन्ध, मोक्ष ये सात केवल एकला अजीवके विकारतें जीवके विकारकू कारण हैं। पेमें
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