________________
++
+
+
+
+
+
+
+
1- ये नवतत्त्व है ते जीवद्रव्यका स्वभावकू छोडिकरि आप अर पर है कारण जाकू ऐसा एक द्रव्य- 5 - पर्यायपणाकरि अनुभवन करते सन्ते तो भूतार्थ हैं । बहुरी सर्वकालमैं नाहीं चिगता एक जीव-"
द्रव्यका स्वभावकू लेकरि अनुभवन करते संते ए अभूतार्थ हैं असत्यार्थ हैं। तातें इनि नवतत्त्वनि" वि भूतार्थनयकरि देखीये तब जीव हे सो तौ एकरूपही प्रकाशमान है ऐसें यह जीवतत्त्व एक+ पणाकरि प्रगट प्रकाशमान हुवा सन्ता शुद्धनयपणाकरि अनुभवन कीजिये है । सो यह अनुभवन
है सो आत्मख्याति है आत्माहीका प्रकाश है । बहुरि आत्मख्याति है सोही सम्यग्दर्शन है। ऐसे 9 यह समस्त कहना निर्दोष है बाधारहित है। . भावार्थ-इनि नवतत्त्वनिकेविर्षे शुद्धनयकरि देखिये तब जीव है सो एक चैतन्यचमत्कार
मात्रही प्रकाशरूप प्रगट है । इसविना न्यारेन्यारे नवतत्त्व देखिये तो किछु है नाहीं। जबताई " - ऐसे जीवतत्त्वका जाणपणा नाही, तबताई व्यवहारदृष्टिमैं है। न्यारेन्यारे नवतत्त्वनिकू माने हैं।
जोवपुद्गलकी बधार्यायरूप दृष्टिकरि न्यारे न्यारे सत्यार्थ दीखे हैं। बहुरी जब जीवपुद्गलका निजस्वरूप न्यारान्यारा शुद्धनयकरि देखीये तब ये पुण्यपाप आदि सात तत्त्व किभी वस्तु नाहीं ॥ "दीखे हैं। निमित्तनैमित्तिकमावतें भये थे सो निमित्तनैमित्तिकभाव मिटै । जीवपुद्गल न्यारेन्यारे फ़ होय तब किछू वस्तु न रहै । वस्तु तो द्रव्य है, सो द्रव्य के निजभाव तौ द्रव्यकी लार है अर
नैमित्तिकभावका तौ अभावही होय, तातें शुद्धनयकरि जीवकू जान्या हुवा ही सम्यम्हष्टिको 卐 प्राप्ति करे है, न्यारे न्यारे जाने जेते आत्माकू जान्या नाही पर्यायबुद्धि है। इहां इस अर्थका + कलशरूप काव्य है।
मालिनीछन्दः चिरमिति नवतच्यछन्नमुन्नीयमानं, कनकनिव निमग्नं वर्णमालाकलापे ।
अथ सततविविक्तं दृश्यतामकरूपं, प्रतिपदमिदमात्मज्योतिस्थोतमानम् ॥ ४ ॥ ॥ ऐसें नवतत्त्वनिविर्षे बहुतकालतें छिप्या हुवा यह आत्मज्योति शुद्धनयकरि निकासि प्रगट 5
+
+
+
+
+
5
५२
+
+