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....: दशम अध्याय -
mariannamannannananana की पगडंडी पर गतिशील नहीं होता, तो इसका तात्पर्य इतना ही है, कि उक्त दोषों के अन्य कारणों के साथ मांसाहार भी, एक कारण है, अर्थात् इससे जीवन में अनेक दोष प्रा घुसते हैं । ... ... ... ....... .: स्वभाव के लिए भी ऐसी बात नहीं है कि कोई व्यक्ति २४ घण्टे . क्रूर ही दिखाई दे। मनुष्य तो क्या,हिंसक जन्तु भी चौबीस घण्टे क्रूर . नहीं दिखाई देते । शेर भी अपने बच्चों को प्यार करता है, अपने
बच्चों एवं शेरनी के साथ खेलता-कूदता है। परन्तु, अपने से इतर पशु .. .. को देखते ही उसकी आंखों में प्राग वरसने लगती है, क्रूरता अटूखे
लियां करने लगती है । यही स्थिति मांसाहारो मनुष्य की है। यह हम पहले वता चुके हैं कि मोह कर्म के उदय से अन्य व्यक्तियों में भी आवेश प्राता है। परन्तु वे फिर भी किसी बात को कुछ हद तक वर्दाश्त भी
कर लेते हैं । परन्तु, मांसाहारी में सहिष्णुता की कमी होती है। .. • ज़रा-सा निमित्त मिलते ही उसकी सुषुप्त क्रूरता जाग उठती है और ...
वह शान्त-सा प्रतीत होने वाला मनुष्य खूखार एवं भूखे भेड़िये की .. तरह सामने वाले प्राणी पर टूट पड़ता है, वरसने लगता है। यह हम . प्रत्यक्ष में देखते हैं कि जरा-जरा-सी बात पर उसे प्रावेश आ जाता . है। और उस समय वह अपने को भूल जाता है, उसको आत्म चेतना · .
सो जाती है, उसकी सोचने-समझने की शक्ति एवं बुद्धि कुण्ठित हो . . जाती है । एक पाश्चात्य विचारक ने ठीक ही कहा है कि- ... . . An angry man opens his mouth and shuts his eyes".
क्रोध के समय मनुष्य की प्रांखे बंद हो जाती है और मुंह खुल जाता है। या यों कह सकते हैं कि उसके ज्ञान चक्षु, सूझ-बूझ की आंखें - बंद हो जाती हैं और दोषों का द्वार खुल जाता है। और यह हम सदा
अपनी आंखों से देखते हैं कि क्रोध एवं क्रूरता का समय व्यक्ति में .: सोचने की शक्ति नहीं रहती, वह उस समय सही एवं गलत बात की .