________________
प्रमेयबोधिनी टीका पद १७ सू० १२ जीवादि सलेश्याल्पवहुत्वनिरूपणम् १४७ एतेन अभिलापेन यथैव लेश्या भाविता स्तथैव ज्ञातव्यं यावच्चतुरिन्द्रियाः, पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकानां संमूच्छिमानां गर्मव्युत्क्रान्तिकानाञ्च सर्वेषां भणितव्यं यावद् अल्पद्धिका वैमानिका क्षेत्राः, तेजोलेश्याः सर्वमहद्धि या वैपानिकाः शुक्ललेश्याः, केचिद् भणन्ति-चतुर्वि 'शतिदण्डकेन ऋद्धि भणितव्या । द्वितीय उदेशकः समाप्तः ॥ सू० १२। ___टीका-अथ-कृष्णादि लेश्यावतां जीवादीनामल्पकिमहर्दिकत्वं प्ररूपयितुमाह-'एएसि णं भंते ! जीवानां कण्हलेसाणं जाव सुक्कलेस्साण य कयरे कयरेहितो अपडिया वा महड्डि या तेउलेस्सा) सब ले महान्, ऋद्धि वाले तेजोलेश्या वाले हैं (एवं पुढविकाइयाण वि) इसी प्रकार पृथ्वीकाधिकों में भी (एवं एएण अभिलावेणं) इस प्रकार इसी अभिलाप से (जहेव) जिस प्रकार (लेस्लाओ) लेश्याएं (भावियाओ) विचारी (लहेव) उसी प्रकार (नेय) जानना चाहिए (जाव चउरिंदिया) चौइन्द्रियों तक (पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं) पंचेन्द्रिय तिर्यचों का (तिरिक्खजोणिणीणं) तिर्यंच स्त्रियों का (संच्छिमाणं गम्भवक्कंतियाण य) संमूच्छिम और गर्भजों का (सब्बेसि) सब का (भाणियध्वं) कहना चाहिए (जाव) यावत् (अप्पडिया वेगाणिया देवा तेउलेस्सा) तेजोलेश्या वाले वैमानिक देव सबसे अल्पधिक हैं (सन्चमहड़िया वेमाणिया सुश्कलेस्सा) शुक्ललेश्या वाले वैमानिक सब से महान् ऋद्धि वाले हैं (केई भगति) कोई कहते हैं (चउवीसं दंडएणं इड्नी भाणियबा) चौवीसों दंडकों में ऋद्धि का कथन करना चाहिए।
द्वितीय उद्देशक समाप्त टीकार्थ-अब कृष्ण आदि लेश्या वाले जीवों में अल्पऋद्धि वाला और महान् ऋद्धि काला कौन है, यह प्रतिपादन करते हैंतनश्यापणा छ (एवं पुढविकाइयाण वि) मे४ ५४ारे पृथ्वी।
यिमा पY (एवं एएण अभिलावेणं) मा ३ मा मनिसाथी (जहेव) २ रे (लेस्साओ) वेश्याम (भावित याओ) पियारी (तहेव) से प्रहाने (नेयव्यं) से (जाव चउरि दिया) यतुरदियों सुधा (पंचि दियतिरिक्खजोणियाणं) पयन्द्रिय तिय याना (तिरिक्खजोणिणीण) तिय यिनी स्त्रियाना (संमुच्छिमाणं गम्भवकंतियाणय) स भूछि म मने AMAR (सव्वेसिं) प्रधान (भाणियव्यं) ४ २ मे (जाव) यावत् (अप्पढिया वेमाणिया देवा तेउलेस्सा) तनवेश्याव वैमानि व माथी २५६५धि४ छ (सव्वमहढिया वेमाणिया सुक्कलेसा) शुसवेश्याqा वैमानि माथी महधि-भान्जद्धिवा छे (केईभणंति) ४ छ (चउवीसंदंडएणं इढि भाणियन्त्रा) यावास मा ऋद्धिनु ४थन ४२ मे.
દ્વિતીય ઉદ્દેશક સમાપ્ત ટીકા-હવે કૃષ્ણ આદિ લેશ્યાવાળા જેમાં અલ્પદ્ધિવાળા અને મહાન દ્વિવાળા કાણું છે, એ પ્રતિપાદન કરે છે