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प्रमेयवोधिनी टीका पद १७ सू० १२ नैरयिकोत्पत्यादिनिरूपणम् लेश्येषु पञ्चन्द्रियतिर्यग्योनिकेषु उपपद्यते, स्यात् कृष्णलेश्य उद्वर्तते, यावत् स्यात शुक्ललेश्य उद्वर्तते, स्याद् यल्लेश्य उपपद्यते, दल्लेश्य उद्वर्तते, एवं मनुष्योऽपि, वानव्यतरा यथा असुन रकुमाराः, ज्योतिष्कवैमानिका अपि एवञ्चैव, नवरं यस्य यल्लेश्याः, द्वयोरपि च्यवनमिति भणितव्यम् ॥ सू० १३ ॥
टीका-द्वितीयोदेशके नैरयिकादीनां लेश्यापरिगणनं तेषामल्पबहुत्वं महर्दिकत्वञ्च प्ररूपितम, अथ तृतीयोद्देशके तेषामेव नैरयिकादीनां तास्तालेश्याः किमुपपातक्षेत्रोत्पन्नानामेव भवन्ति ? किंवा विग्रहेऽपि भवन्ति ? इति वक्तव्यतां प्ररूपयितुं प्रथमं नयान्तरमधिकृत्य नैरकृष्ण यांवत् शुक्ललेश्या वाले (पंचिंदियतिरिक्खजोणिएसु उववज्जइ) पंचेन्द्रिय तिर्यों में उत्पन्न होता है (सिय कण्हलेसले उववह) स्यात् कृष्णलेश्या वाला उदवर्तन करता है (जाव सिय सुक्कलेस्से) यावतू स्यात् शुक्ललेश्या वाला (ज्वाइ) उदवर्तन करता है (सिय जल्लेस्से उवधज्जइ तल्लेस्से उधवइ) स्यात् जिस लेश्या वाला उपजता है उसी लेश्यावाला उद्वृत्त होता है (एवं मणूसे वि) इसी प्रकार मनुष्य भी (वाणमंतरा जहा असुरकुमारा) वानव्यन्तर जैसे असुरकुमार (जोइसिय वेमाणिया वि एवं चेब) ज्योतिष्क एवं वैमानिक भी इसी प्रकार (नवरं जस्ल जल्लेस्ला)विशेषता यह कि जिसके जितनी लेश्याएं हैं (दोपण वि चयंति भाणियध्वं) दोनों अर्थात् ज्योतिष्कों और वैमानिकों के लिए च्यवन करते हैं, ऐसा कहना चाहिए। ___टोकार्थ-द्वितीय उद्देशक में नैरयिकों आदि की लेश्याओं की गणना, उनके 'अल्पचहत्व और अल्पविकत्व-महर्दिकत्व की प्ररूपणा की गई है, तृतीय 'उद्देशक में यह बतलाया जा रहा है कि नैरयिकों आदि की वे लेश्याएं क्या उत्पत्तिक्षेत्र में उत्पन्न होने पर ही होती हैं अथवा उत्पत्तिक्षेत्र की ओर जाते ४० यावत् शुस२५वा (पचिंदियतिरिक्खजोणिएसु उववज्जइ) ५येन्द्रिय तिय यामा Gurन थाय छ (सिय कण्हलेस्से उबवट्टइ) स्यात् वेश्या वतन ४२ छ (जाव 'सिय सुक्कलेस्से) यावत स्यात् शुसले पा (उववट्टइ) पनि ४२ छ (सिय, जल्लेसे उववज्जइ तेल्लेरसे उबबट्टइ) स्यात्
Gपन्न ५ छे तसेश्यावाणाम वृत्त थाय छ (एवं मणूसे वि) मे रे मनुष्य ५ (वाणमंतरा जहा असुरकुमारा) पानव्यन्तर
41 मसुमार (जोइसियवेमाणिया वि एवंचेव) न्याति मने मानि: ५६४ सारे (नवरं जस्स जल्लेस्सा) विशेषता मनी रेटी श्यामे। (दोण्ह वि चयंति भाणिय છે અને અર્થાત્ તિષ્ક અને વૈમાનિકોના માટે ચ્યવન કરે છે, એવું કહેવું જોઈએ.
ટીકા-દ્વિતીય ઉદ્દેશકમાં નરયિકે વિગેરેની વેશ્યાઓની ગણના તેમના અલ્પગ્રહત્વ અને અ૫ધિકત્વ મહર્ષિકત્વની પ્રરૂપણ કરાઈ છે, તૃતીય ઉદ્દેશકમાં એ બતાવાય છે કે નરયિકે આદિની તેલેશ્યાઓ શું ઉત્પત્તિક્ષેત્રમાં ઉત્પન-થતાં જ થાય છે અથવા ઉત્પત્તિક્ષેત્રની તરફ જતાં સમયે વિગ્રહ ગતિમાં પણ હોય છે ? પ્રથમ નયાન્તરને આશ્રય