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प्रमैयबोधिनी टोका पद २१ सू० २ औदारिकशरीरसंस्थाननिरूपण संस्थितं प्रज्ञप्तम् ? गौतम ! पडूविधसंस्थानसंस्थितं प्रज्ञप्तम्, तद्यथा-समचतुरस्रं यावद्, हुण्डसंस्थानसंस्थितम्, एवं पर्याप्तापर्याप्तानामपि ३, एवमेते तिर्यग्योनिकानाम् औधिकानां नव बाळापकाः, जळचरपञ्चेन्द्रियतिर्यग्यो निकौदारिकशरीरं खलु भदन्त ! किं संस्थानसंस्थितं प्रज्ञप्तम् ? गौतम ! पइविधसंस्थानसंस्थितं प्रज्ञप्तम्, तद्यथा-समचतुरस्त्रम् यावद् हुण्डम्, एवं पर्याप्तापर्याशानामपि, संमूर्षिकममळचराः हुण्डसंस्थानसंस्थिताः, एतेषाञ्चैव पर्याप्ता अपि आकार का कहा है ? (गोयमा! हुंडसंठाणसंठिए पण्णत्ते) गौतम ! हुंडसंस्थान वाला कहा है (एवं पजत्तापजलाण वि) इसी प्रकार पर्याप्तो-अपर्याप्तों का भी (गम्भवतियतिरिक्ख जोणिय पंचिंदियओरालियसरीरे णं भंते ! किं संठाण संठिए पण्णत्ते ?, हे भगवन् ! गर्भज तियेच पंचेन्द्रिय औदारिकशरीर किस आकार का है ? (गोयमा ! छव्विह संठिए पण्णत्ते) हे गौतम ! छह प्रकार के संस्थान वाला कहा है (तं जहा-समचउरंसे जाव हुंडसंठाणसंठिए) वह इस प्रकार-समचतुरस्त्र यावत् हुंडक संस्थान वाला (एवं पजत्तापजत्ताण वि) इसी प्रकार पर्याप्तों-अपर्याप्तों का भी (एवमेते) इस तरह ये (तिरिक्खजोणियाणं) तिर्यग्योनिकों के (ओहियाणं) औधिकों के (णव आलावगा) नौ आलापक (जलयरतिरिक्ख जोणिय ओरालियसरीरे णं भंते ! किंसंठाण संठिए पपणते ?) जलचर तियेच औदारिकशरीर हे भगवन् ! किस आकार का कहा है ? (गोयमा! छविहसंठाणसंठिए पण्णत्ते) हे गौतम! छह तरह के संस्थान वाला कहा है (तं जहा-समचउरंसे जाव हुंडे) समचतुरस्र यावत् हुंड (एवं पज्जत्तापजत्ताण वि) इसी तरह पर्याप्तों-अपर्याप्तों का भी (संमुच्छिमजलयरा हुंडसंठाण संठिआ (गोयमा ! हुंड सठाणसं ठिए पण्णत्ते) 3 गौतम । हुस स्थानका ४i छे (एवं पज्जत्ता.. पज्जत्ताण वि) से प्रारे पास मत मर्याप्सोना ५९ (गन्भवतिय तिरिक्खजोणिय पंचिंदिय ओरालियसरीरे गं भंते । किं संठोणसं ठिए पण्णते १) 8 लगवन् ! म तिय"य ५यन्द्रिय मोहरिशरीर व मा२ना ह्या छ ? (गोयमा | छविहस ठाणसठिए पण्णत्ते) गौतम! ७ प्र२ना संस्थानका ४i छ (तं जहा-समचउरंसे जाव हुडसठाणसठिए) ते मा प्रारे-सभन्यतुरस यावत् ४ संस्थान (एवं पज्जत्तापज्जत्ताण वि) से प्रक्षरे पर्याप्ती-अपर्याप्तीना पY (एवमेते) शते मेमे (तिरिक्खजोणियाणं) तियानिडाना -(ओहियाण) मौधिन (णव आलावगा) 14 मासाप। थाय छे.
(जलयरतिरिक्खजोणिय ओरालियसरीरे णं भंते किं संठाणसठिए पण्णत्ते) सय२ तियोशिरीर है सावन् ! 341 मा२॥ ४i छ ? (गोयमा ! छबिहस ठाणस ठिए पण्णत्ते) 3 गीत छ तना सस्थानबाणा ४i छ (तं जहा-समचउरंसे जाव हाडे) सभन्यतुरख यावत् ४ (एवं पज्जत्ता पज्जत्ताण वि) मे शते पर्याप्ती-मारताना पY.
(समुच्छिमजलयरा हुडस ठाणसठिआ) सभूछि १८५२ हु सस्थानवाणा