Book Title: Pragnapanasutram Part 04
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 764
________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद २१ ० ७ आहारकशरीरनिरूपणम् अमणसआहारगसरीरे' मनुष्याहार सशरीरं भवति नो अमनुष्याहारकशरीरं भवति, गौतमः पृच्छति-'जइ मणूसाहारगसरीरे किं संसुच्छिामणसआहारगसरीरे, गमवकंतियमणूसआहारगसरीरे ?' यदि मनुष्याहारकशरीरं भवति तत् किं संमूच्छिममनुष्याहारकशरीरं भवति ? किंवा गर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्याहारकशरीरं भवति ? भगवानाह-'गोयमा!' हे गौतम ! 'नो समुच्छिममणूस आहारंगसरीरे, गम्भवकंतिय मणप्तआहारगसरीरे' नो समूच्छिममनु. ध्याहारशरीरं भवति, अपितु गर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्याहारकशरीरं भवति, गौतमः पृच्छतिका निरूपण किया जाता है श्रीगौतमस्वामी-हे भगवन् ! आहारकशरीर कितने प्रकार का कहा है ? भगवान्-हे गौतम ! आहारकशरीर एक ही प्रकार का कहा गया है। श्रीगौतमस्वामी-हे भगक्षत् ! यदि एक ही प्रकार का है तो यह क्या मनुष्य का आहारकशरीर होता है अथवा अमनुष्य अर्थात् मनुष्येतर जीवों का आहारकशरीर होता है, भगवान-हे गौतम ! गनुष्य का ओहारकशरीर होता है, मनुष्येतर का आहारकशरीर नही होता! श्रीगौतमस्वामी-हे भगवन् ! यदि मनुष्य का आहारकशरीर होता है तो क्यासंमूर्छिम मनुष्य का आहारकशरीर होता हैं या गर्भज मनुष्य का आहारक शरीर होता है? भगवान्-हे गौतम ! संमृळुिव मनुष्य का आहारकशरीर नहीं होता किन्तु गर्भज मनुष्य का आहारकशरीर होता है। . श्रीगोतमस्वामी-भगवन् ! यदि गर्भज मनुष्य का आहारकशरीर होता है तो क्या कर्मभूमि के गर्भज मनुष्य का होता है, या अकर्मभूमि के गर्भज मनुष्य का होता है अथवा अन्तरदीप के गर्भज मनुष्य का होता है ? । કરેલું છે. હવે આહારકશરીરના ભેદ, સંસ્થાન અને અવગાહનાનું નિરૂપણ કરાય છે શ્રીગૌતમસ્વામી– હે ભગવન! આહારકશરીર કેટલા પ્રકારના કહ્યાં છે ? શ્રીભગવન હે ગૌતમ ! આહારકશરીર એકજ પ્રકારના કહ્યાં છે. શ્રીગૌતમસ્વામી–હે ભગવન જો એકજ પ્રકારના છે તે તે શું મનુષ્યના આહારકRાર હોય છે અથવા મનુષ્ય અર્થાત મનુષ્યતર જીના આહારકશરીર હોય છે ? શ્રીભગવાન–હે ગૌતમ ! મનુષ્યના આહારકશરીર હોય છે, મનુષ્યતરના આહારકશરીર નથી હોતાં. શ્રીગૌતમસ્વામી-હે ભગવન! જે મનયના આહારકશરીર હોય છે તે સંમૂર્ણિમ મનુષ્યના આહાર શરીર હોય છે અગર ગર્ભજ મનુષ્યના આહારકશરીર હોય છે? શ્રી ભગવાન્ હે ગીતમ! સંભૂમિ મનુષ્યના આહારકશરીર નથી હોતા, કિન્તુ ગભ જ મનુષ્યના આહારકશરીર હોય છે. प्र० ९५

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