Book Title: Pragnapanasutram Part 04
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 794
________________ प्रमैयबोधिनी टीका पद २१ सू० ९ तैजसशरीरावगाहनानिरूपणम् ७८१ विक्खंभवाहल्लेणं' शरीरप्रमाणमात्रा-शरीरप्रमाणा मात्रा इयत्ता यस्याः सा शरीरप्रमाणमात्रा विष्कम्भवाहल्येन-विष्कम्भे-उदरादिविस्तारेण, वाहल्येन-उरः पृष्ठस्थूलत्वेनेत्यर्थः तैजसशरीरावगाहना प्रज्ञप्ता, 'आयामेण जहणेणं अंगुलस्स असंखेजहभाग, उक्कोसेणं लोगंताओ लोगते’ आयामेन-दैर्येण तु जघन्येन अङ्गुलस्यासंख्येयभागः-अब्बालासंख्येयभागप्रमाणा, सार्चकेन्द्रियस्यैकेन्द्रियेषु अत्यासन्नतयोत्पद्यमानस्यावसेया, उत्कृष्टेन तु लोकान्तात् लोकान्तं यावत्, तथा चाधोलोकान्तादारभ्य ऊर्ध्वलोकान्तं यावत् ऊर्ध्व लोकान्तादारभ्याधोलोकान्तं यावत् तावत्प्रमाणा तैजपशरीरावगाहना प्रज्ञता, सा चोत्कृष्य तैजसशरीरावगना एकेन्द्रियस्यैव सूक्ष्मस्य बादरस्य वा अबसेया, तदन्येपामसंभवात्, एकेन्द्रियाः पुनः सूक्ष्माः वादाश्च यथायोगं सम्पूर्णेऽपि लोके वर्तन्ते तदन्ये तु नो वर्तन्ने तस्माद् यदा सूक्ष्मो वादरो वा एकेन्द्रियोऽधोटे के स्थितः सन ऊर्वलोकान्ते सूक्ष्मत्वेन वादरत्वेन वा समुत्पत्तुमीहते, अर्वलोकान्ते वा स्थितः सन् सूक्ष्मो वादरो वा अधोलोकान्ते सूक्ष्मत्वेन वादरत्वेन वा भगवान-हे गौतम ! विष्कम अर्थात् जदर आदि के विस्तार और बाहल्य अर्थात् छाती और पेट की मोटाई के अनुसार शरीर प्रमाण मात्र ही अवगाहना होती है। लम्बाई की अपेक्षा तैजसशरीर की अदगाहना जघन्य अंगुल के असंख्या भाग की होती है। यह जघन्य अवगाहना उस समय समझनी चाहिए जब कोई एकेन्द्रिय जीव अत्यन्त निकट प्रदेश में एकेन्द्रिय में उत्पन्न होने वाला हो । उत्कृष्ट अवगाहना लोकान्त से लोकान्त तक होती है, अर्थात् अधोलोन के चरमान्त से लेकर उर्व लोक के चरसान्त तक या अर्ध्व लोक के चरमान्त से अधो लोक के चश्मान्त तक को तैजस शरीर की अवगाहना होती है । यह उत्कृष्ट अवगाहना सक्षम या चादर एकेन्द्रिय के तैजसशरीर की ही समझनी चाहिए। एजेन्द्रिय के सिवाय अन्य किसी जीव की इतनी अवगाहना नहीं हो सकती। क्योंकि सक्षम और बादर एकेन्द्रिय यथायोग्य समस्त लोक में रहते हैं, अन्य जीव नहीं। अतएव जब कोई सूक्ष्म अथवा बादर एकेन्द्रिय શ્રીભગવાન-હે ગૌતમ! વિન્કંભ અર્થાત્ ઉદર આદિને વિસ્તાર અને બાહથ અર્થાત પેટની મેટ ઈન અનુસાર શરીર પ્રમાણ માત્રજ અવગાહના હોય છે. લંબાઈની અપેક્ષાએ તે૪સશરીરની અવગાહના જઘન્ય અંગુલના અસંખ્યા મા ભાગની હોય છે. આ જઘન્ય અવગાહના તે સમયે સમજવી જોઈએ જ્યારે કેઈ એકેન્દ્રિય જીવ અત્યન્ત નિકટ પ્રદે. શમાં એકેન્દ્રિયમાં ઉત્પન્ન થનાર છે. ઉત્કૃષ્ટ અવગાહના કાન્તથી સેકન્ડ સુધી હોય છે, અર્થાત્ અલેકના ચરમાન્સથી લઈને કર્વકના અરમાન્ત સુધી અગર ઉદ્ગલોકાન્તથી લઈને અલેકના અરમાન્ત સુધીની તૈસશરીની અવગાહના હોય છે. આ ઉત્કૃષ્ટ અવગાહના સુક્ષમ યા બાદ એકેન્દ્રિયના તૈજસશરીરની જ સમજવી જોઈએ એકેન્દ્રિયના સિવાય અન્ય કોઈ જીવની આટલી અવગાહના નથી હોઈ શકતી. કેમ કે સૂમ અને બાદર એકે.

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