Book Title: Pragnapanasutram Part 04
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 834
________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद २१ सू० ११ औदारिकादि शरीरवतां अल्पवहुत्वनिरूपणम् ८६१ शरीराणि द्रव्यार्थतया शरीरमात्रद्रव्यसंख्यया भवन्ति, उत्कृष्टेनापि तेषां सहस्रपृथक्त्वस्यैबोपलभ्यमानखात् तथाचोक्तम्-'उक्कोसेण उ जुगवं पुहुत्तमेत्तं सहस्साण' उत्कृष्टेन तु युगपद सहस्राणां पृथक्त्वमात्रम्' इति, तेभ्योऽपि 'वेउव्वियसरीरा वट्ठयाए असंखेज्जगुणा' वैकियशरीराणि द्रव्यार्थतया शरीरमात्रद्रव्यसंख्यया असंख्येयगुणानि भवन्ति, सर्वेषां नैरयिकाणां सर्वेषाञ्च देवानां कतिपयपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकमनुष्यवादरवायुकायिकानां च वैक्रियशरीरसंभवात्, तेभ्योऽपि-'ओरालियसरीरा दबट्टयाए असंखेजगुणा' औदारिकशरीराणि द्रव्यार्थतया-शरीरमात्रद्रव्यसंख्यया असंख्येयगुणानि भवन्ति, पृथिव्यप्तेजोवायुवनस्पतिकायिक द्वित्रि चतुरिन्द्रियपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकमनुष्याणामौदारिकशरीरसद्भावात्, पृथिव्यप्तेनोपायुक्नस्पतिकायिकशरीराणाञ्च प्रत्येकमसंख्येयलोकाकाशप्रदेशप्रमाणत्वात्,तेभ्योऽपि-'तेया. कमगसरीरा दो वितुल्ला दबट्टयाए अर्णतगुणा' तैजसकार्मणशरीराणि स्वस्थाने परस्पराविनाभाविखात् द्वयान्यपि तुल्यानि द्रव्यार्थतया शरीरमात्रद्रव्यसंख्यया अनन्तगुणानि भवन्ति सूक्ष्मकर्मणशरीर में से द्रव्य की अपेक्षा से, प्रदेशां की अपेक्षा द्रव्य-प्रदेशी की अपेक्षा से कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक है ? ____भगवान्-हे गौतम ! सघ से कम द्रव्य की अपेक्षा से आहारक शरीर हैं, क्योंकि आहारकशरीर उत्कृष्ट, संख्यात हों तो भी सहस्रपृथक्त्व (दो हजार से नौ हजार तक) ही होते हैं। कहा भी है-एक साथ आहारकशरीरों की अपेक्षा वैक्रिपशरीर द्रव्य से असंख्यात गुणा अधिक होते हैं, क्योंकि सभी नारकों के सभी देवों के, कतिपय पंचेन्द्रिय तिर्यंचों के, मनुष्यों के और बाद वायुकायिकों के वैफ्रियशरीर होता है। वैक्रियशरीर की अपेक्षा औदारिकशरीर द्रव्य की अपेक्षा-शरीरसंख्या की दृष्टि से असंख्यात गुणा होते हैं, क्योंकि औदारिक शरीर पृथ्वीकायिकों, अप्कायिकों, तेजस्कायिकों, वायुकायिकों, बनस्पतिकायिकों, दीन्द्रियों, त्रीन्द्रियों, चतुरिन्द्रियों, पंचेन्द्रिय तिथंचों और मनुष्यों के होता है और पृथ्वी-अप-तेज, वायु तथा वनस्पतिकायिकों में से प्रत्येक असंख्यात लोकाकाश प्रमाण हैं । तैजस और कार्मणशरीर दोनों बराबर-बराबर होते हैं किन्तु भौदारिक शरीरों की अपेक्षा अनन्त गुणा हैं, क्योंकि सूक्ष्म और चादर निगोद કે આહારકશરીર ઉત્કૃષ્ટ સ ખ્યક હોય તે પણ સહસ્ત્ર પૃથક(બે હજારથી નવહજાર સુધી)જ હોય છે. કહ્યું પણ છે- એકીસાથે આહારકશરીર અધિથી અધિક સહસ્ત્ર પૃથકત્વ હોય છે, આહારકશરીરોની અપેક્ષાએ વિક્રિયશરીર દ્રવ્યથી અસંખ્યાતગણુ હૈોય છે, કેમ કે બધા નાર, બધા દેવોના કેટલાક પંચેન્દ્રિય તિચેના, મનુષ્ય અને બાદર વાયુકાચિકેના વૈશિરીરની અપેક્ષાએ દારિક શરીર દ્રવ્યની અપેક્ષાએ શરીર સંખ્યાની દષ્ટીથી સંખ્યાતગણી હોય છે, કેમ કે ઔદારિક શરીર પૃથ્વીકાયિક, અષ્કાયિક, તેજસ્કાયિક, વાયુકાચિકે, વનસ્પતિકા ચિકે, ઢીદ્ધિ, ત્રીન્દ્રિય ચતુરિન્દ્રિય તિર્યો અને મનુષ્યના હોય છે અને પૃથ્વીકાય-અપલેજ-વાયુ તથા વનસ્પતિકાવિકોમાંથી પ્રત્યેક અસંખ્યાત કાકા પ્રમાણ છે. તેજસ અને કર્મણશરીર અને બરાબર હોય છે પણ દારિક શરીરની અપેક્ષાએ અનન્તગણું ,

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