Book Title: Pragnapanasutram Part 04
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 801
________________ ७८ प्रशापनास्त्र प्रतिपादिता तथा पञ्चेन्द्रियतिर्यज्योनिकस्यापि ते जसरीस्यावहता विप्पामवाढल्येन शरीरप्रमाणमात्रा, आयामतस्तु जघन्येन अतुलस्यासंख्येमागमात्रा, उत्कृष्टेन पुनस्नियालो. काद् अधोलोकान्तम् ऊबलोकान्त वा यानत तावत्प्रमाणा अरसे ये ति मायः पश्चन्द्रियतिर्यग्योनिकस्यैकेन्द्रियेषु उत्पादसंशवाद, गौतमः पृच्छति--'मणुस्सस्त गते ! कारणंतियसमुग्धाएणं समोहयत्स तेयासरीरस्स के यहालिया सरीशेगाहणा पणता ?' हे भदन्त ! गनु. प्यस्य खलु मारणान्तिकसमुद्घातेन वक्ष्यमाणलक्षणेन समवक्तस्य सतः तेजसशरीरस्य किं महालया-कियद् निस्तारा शरीरावगाहना प्रज्ञप्ता ? शगवानाह-'गोयमा !' हे गौतम ! 'समयखेत्ताओ लोगतो' उत्कृष्टेन समयो जात्-मनुष्मक्षेत्रात् याबद् लोकान्तम्-अमोलोकान्तम् ऊर्वलोकान्तं वा तावत्प्रमागा मनुष्यतै जसरीरावगाहना अबसेया, मनुष्यस्यापि एकेन्द्रियेषु समुत्पादसंभवात्, अत्र समयक्षेत्रपदोपादानेन समयक्षेशदन्यत्र सनुष्यजन्मनः संहरणस्य चा संभवेनातिरिक्ताया अवगाहनाया असंभवात्, समय प्रधान क्षेत्र समय क्षेत्रमिति मध्यमपदकोपि चाहिए । अर्थात् विष्कंभ और बाहय की अपेक्षा शरीरप्रमाण है, लम्बाई की अपेक्षा जघन्य अंगुल के असंख्यात भाग और उत्कृष्ट तिर्यक्रलोक से अधोलोक तक या ऊर्वलोक तक की अवगाहना कही गई है, क्यों कि पंचेन्द्रिय तिथंच का उत्पाद एकेन्द्रिय के समाल नहीं होता है। श्रीगौतमस्वामी-हे अगवन् ! मारणान्तिक लशुद्घात से समवहत मनुष्य के तैजसशरीर की अवगाहना कितनी बडी कही गई है ? ____ भगवान-हे गौतम ! उत्कृष्ट समयक्षेत्र अर्थात् अतुज्यक्षेत्र से अधोलोक या अलोक के अन्त तक मनुष्य के जलशरीर की अवमाहना जानना चाहिए। क्योंकि मनुष्य का भी एकेन्द्रिय के मह उत्पाद का संभव है। यहां समयक्षेत्र का ग्रहण करने से, समय क्षेम ले ली अन्यन मनुष्य का जन्म अथवा संहरण संभव नहीं है, अतः इससे अधिक अवगाहना नहीं हो सकती, यह स्तूचित किया અને બાહિત્યની અપેક્ષાએ શરીર પ્રમાણ છે, લંબાઈની અપેક્ષાએ જઘન્ય અંગુલ અસં. ખ્યાત ભાગ અને ઉત્કૃષ્ટ તિર્યકથી અર્ધલેક સુધી અગર ઊકલેક સુધીની અવ ગહના કહેલી છે, કેમ કે પંચેન્દ્રિય તિર્યંચના ઉત્પાદ એકેન્દ્રિયના સમાન નથી હોતા. શ્રીગૌતમસ્વામી–હે ભગવન્ ! મારણાન્તિક સમુઘાતથી સમવહત મનુષ્યના તેજસશરીરની અવગાહના કેટલી ભેટી કહેલી છે ? શ્રીભગવાન-હે ગૌતમ ! ઉત્કૃષ્ટ સમય ક્ષેત્ર અર્થાત્ મનુષ્ય ક્ષેત્રથી અલાક અગર ઊર્વકના અન્ત સુધી મનુષ્યના તેજસશરીરની અવગાહના જાણવી જોઈએ કેમ કે મનુવ્યનો પણ એકેન્દ્રિયને રૂપમાં ઉત્પાદ સર્વત્ર છે. અહીં સમયક્ષેત્રનું ગ્રહણ કરવાથી સમય ક્ષેત્રથી અન્યત્ર-મનુષ્યને જન્મ અથવા સ હરણ સંભવિત નથી. તેથી એનાથી અધિક અવગાહના નથી હઈ શકતી, એ સૂચિત કરેલું છે. સમય

Loading...

Page Navigation
1 ... 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808 809 810 811 812 813 814 815 816 817 818 819 820 821 822 823 824 825 826 827 828 829 830 831 832 833 834 835 836 837 838 839 840 841