Book Title: Pragnapanasutram Part 04
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 798
________________ प्रमैयबोधिनी टीका पद २१ ० ९ तैजसशरीरावगाहनानिरूपणम् ७८५ ग्लोकपदोपादानान्तु नेषां प्रायरितयंग्लोकः स्वस्थानमिति बुद्ध्या कृतम्, विरलतया तु अधो. लोकैकदेशेऽप्यपालक यादी, अबलोकैकदेशेऽपि एण्डकवनादौ द्वीन्द्रियसंभवात् तदपेक्षया तदन्याऽपि द्वीन्द्रियतैयारीरावगाहना विज्ञेया ‘एवं जाव चउरिदियस्स' एवम्-द्वीन्द्रियोक्तरीत्या यारत् त्रीन्द्रियस्य चतुरिन्द्रि पस्य चापि मारणान्तिकसमुद्घातेन समबहतस्य तैजसशरीरावगाहना विष्कम्स वाइल्येन शरीर प्रमाणमात्रा, आयामेन जघन्यतोऽङ्गुलस्यासंख्य भाग मात्रा, उत्कृष्टेन पुनम्तियरलोकात् अधोलोकान्तम्, ऊलोकान्तं वा यावत् तावत्प्रमाणाऽव सेया, गौतमः पृच्छति-'नेरइयल्स ग भंते ! मारणतियसम्मुर पाएणं समोहयक्ष्म तेयासरीरस्स के महालिया सरीरोगाहणा पण्णता ?' हे भदन्न ! नैरयिकस्य खलु मारणान्तिकसमुद्घातेन वक्ष्यमा स्वरूपेण समवहतल्य-समनातं गतस्य सतः, तैजसशरीरस्य किं महालया-कियद्विस्तारा शरीरावगाहना प्रज्ञता ? भगानाह-'गोरना।' हे गौतम ! 'सरीरप्पमाणमेत्ता विक्रखं. गाहना होती है । तिर्यक लोक पद ला ग्रहण करने का कारण यह है कि उनका स्वस्थान प्रायः लियेक लोक ही है। चिरल रूप से अधो लोक के एक भाग अधो लौकिक ग्राम आदि में तथा अर्व लोक के एक भाग पण्डकवन आदि में भी दीन्द्रियों का होना संभव है। __हीन्द्रियों के समान नीन्द्रियों और चतुरिन्द्रियों के तेजलशरीर की, जो मारणान्तिक समुद्घात ले सरवत हों, अवगाहना समझ लेनी चाहिए, अर्थात् त्रीन्द्रियों और चौइन्द्रियों की अवगाहना भी विकल और बाहल्य की अपेक्षा शरीरममाण मात्र होती है। लम्बाई की अपेक्षा जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग की और उत्कृष्ट तिर्यक्लोक ले अधो लोकान्त लक अथवा ऊर्व लोकान्त तक की हाललनी चाहिए। गौतमस्वामो-हे सगवन ! धारणान्तिक समुद्घाल खेलमवहत नारक के तैजसशरीर की अवगाहना कितनी लहान होती है ? અવગાહના થાય છે તિર્યક, પદનુગ્રહણ કરવાનું કારણ એ છે કે તેમના સ્થાન પ્રાયઃ તિર્યાફક જ છે. વિરલ રૂપથી અધોલોકનો એક ભાગ અધેલીઝિક ગ્રામ આદિમાં તથા ઊર્ધ્વલકનો એક ભાગ પડકવન આદિના પણ કીન્દ્રિયનું હોવું સંભવિત છે. , દ્વીન્દ્રિયની સમાન ત્રીન્દ્રિયોમાં અને ચતુરિન્દ્રિના તેજસશરીરની, જે મારણન્તિક સમુઘાતથી સમવહન થાય, અવગાહના સમજી લેવી જોઈએ. અર્થાત્ ત્રીન્દ્રિય ચતુરિન્દ્રિયની અવગાહના પણ વિઠંભ અને બાહલ્યની અપેક્ષાએ શરીર પ્રમાણમાત્ર હોય છે. લંબાઈની અપેક્ષાએ જન્ય અંગુલના અસંખ્યાતમાભાગની અને ઉત્કૃષ્ટ તિર્યફલેકથી અલેકાન્ત સુધી અથવા ઊર્વિકાન્ત સુધીની સમજવી જોઈએ. શ્રીગૌતમસ્વામી–હે ભગવન ! મારણતિક સમુદ્દઘાતથી સમવહત નારકના તેજસ. " શરીરની અવગાહના કેટલી મોટી હોય છે ? H० १.

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