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प्रमैयबोधिनी सोहर पद २१ १० ८ तैजसशरीरनिरूपणम् औदारिकशरीरस्य भेदो भणितस्तथा तै लसस्यापि यावच्चतुरिन्द्रियाणाम्, पञ्चेन्द्रियतै जसशरीरं खल भदन्त ! कतिविधं प्रज्ञप्तम् ? गौतम ! ६श्चेन्द्रियतैजसशरीरं चतुर्विधं प्रज्ञप्तम्, तद्यथानैरयिकतै जलशरीरं यावद् देवतैजसशरीरम्, नैरयिशाणां द्विगतो भेदो भणितव्यः, यथा वैक्रियशरीरे, पञ्चेन्द्रियतिग्योनिकानां मनुष्याणाश्च यथा औदारिकशरीरे भेदो भणितस्तथामणितव्यो यावत् सर्वार्थसिद्धदेव इति, जसशरीरं खलु भदन्त ! कि मंस्थितं प्रज्ञप्तम् ? कहा है ? (गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते) हे गौतम ! पांच प्रकार का कहा है (तं जहा पुढविकाइयएगिदियलेयगसरीरे जाव वणस्सइ काइयएगिदियतेयगसरीरे) वह इस प्रकार-पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय तेजस शीर यायतू वनस्पतिकायिक एकेन्द्रिय तैजसशरीर (एवं जहा ओरालियसरीरस्स भेदो भणिओ) इस प्रकार जैसे औदारिकशरीर के भेद कहे हैं (तहा तेवगस वि) उसी प्रकार तैजस के भेद भी कहना चाहिए (जाब चउरिदिया ण) चौइन्द्रियों तक
(पंचिंदियतेयगसरीरेण मंते ! कहाविहे पण्णत्ते ?) हे भगवन् ! पंचेन्द्रिय तेजसशरीर कितने प्रकार का कहा है ? (गोयमा ! चउविहे पण्णत्ते) हे गौतम! चार प्रकार का कहा है (तं जहा-नेरइयतेयगसरीरे जाव देवतेयगहरीरे) वह इस प्रकार-नरयिक तैजसशरीर यावतू देवतैजसशरीर (नेरझ्याणं दुगो भेदो आणि यंवो) नारकों के दो भेद कहना चाहिए (जहा वेउव्वियसरीरे) जैसा वैक्रियशरीर (पंचिंदिय तिरिक्खजोणियाणं) पंचेन्द्रिय तिर्यचों का (मगुस्साण य) और मनुष्यों का (जहा ओरालियसरीरे) जैसे औदारिकशरीर का (भेदो भणिओ) भेद कहा है (नहा भाणियन्वो) इसी प्रकार कहना चाहिए (देवाणं जहा वेउव्विय આ પ્રકારે–પૃથ્વીકાયિક એકેન્દ્રિય તૈજસશરીર યાવત વનસ્પતિ કાયિક એકેન્દ્રિય તેજસશરીર . (एवं जहा ओरालियसरीरस्स भेदो भणिआ) से प्रारे 24मोह२ि४शरीर मे हा छ (तहा तेयगस्स) मे रे तैसना से ५५ ४ान (जाव चारिदियाणं) यतुरिન્દ્રિય સુધી
(पंचिंदिय तेयगसरीरेणं भंते ! कइविहे पण्णत्ते) मसन् ! ५न्द्रिय सशरीर ४८९॥ रन ४ा छ ? (गोयमा ! चउबिहे पण्णत्ते) गौतम ! यार प्रा२ना ४i छ ? (तं जहा नेरइयतेयगसरीरे जाव देवयतेयगसरीरे) २ मा प्रारे-नरिय४ तेसशरी२ यावत् हे तसशश२ (नेरइयाणं दुगओ भेदो भाणियव्वो) ना२हना मेले ४ा नये (जहा वेउ. बियसरीरे) २७ वैशिरी२ (पंचिंदिय तिरिक्खजोणियाण) यान्द्रय तिय याना (मणू साणय) भने मनुष्याना (जहा ओरालियसरीरे) २६i मोवि शरीरना (भेदा भणिओ) मेह छ (तहा भाणियव्वो) से प्र४२ना वा नये (देवाणं जहा वेउब्वियसरीरे भेओ भणिओ तहा भाणियव्वो) हेवाना वा यश२॥ ४ा छे, मे०४ ४ारे तसशरीना सह सभ देव नये' (जाव सबटुसिद्ध देवत्ति) साथ सिद्धना है। सुधा