Book Title: Pragnapanasutram Part 04
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 755
________________ सशापनासूत्रे विट्रि पज्जत्तग संखेजबासाउथ कमभूमगमभयकलिश मणूल आहास्मसरीरे ? गोयमा ! इड्डिपत्तामत्त संजय सम्मादिष्टि पज्जत्तम संखेज्जवासाउय कम्मभूमगगब्भवलिय मणूस आहारशरीरे, नो अणिनिपत्तपमत्त संजय लम्मदिष्टि पज्जत्तम संग्वेजवालाउच कम्समगगनवक्कंतिय मणूस आहारगलरीरे, आहारणसरीरे का भंते ! कि संठिए पण्णत्ते १ गोयमा ! लमच उससंठाणसंठिए पपणते, आहारगलरीरस्त पं भंते ! के महालिया सरीरोगाहणा पण्णता ? गोयमा ! जहाणेणं देखूणा रयणी, उक्कोसेणं पडिपुण्णा रयणी ॥सू० ७॥ ___ छाया-आहारकशरीरं खलु भवन्त ! कतिविधं प्रज्ञप्तम् ? गौतम ! एकाकारं प्रज्ञप्तम्, यदि एकाकारं किं मनुष्याहारकशरीरम्, अमनुष्याहार कशरीरं ? गौतम ! मनुष्याहारकशरीरस्, नो अमनुष्याहारकशरीरम्, यदि मनुष्याहारसशरीरं किं संमूच्छिामनुष्याहार शरीरम्, गर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्याहारकशरीरम् गौतम! नो संपूच्छिगनुष्याहारकशरीरम्, गर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्या. आरारक शरीर वक्तव्यता शब्दार्थ-(आहारगसरीरे गं अंते ! काइविहे पण्णत्ते ?) हे भगवन् ! आहारकशरीर कितने प्रकार का कहा है ? (गोयक्षा! एगागारे पण्णन्ते) हे गौतम ! एक आकार का कहा है (जइ एगागारे किं मणूस आहारगलरीरे, अमणूस आहारगसरीरे) अगर एक आकार का होता है तो क्या मतुप्य का आहारक शरीर होता है ? या मनुष्येतर का आहारक शरीर होता है (गोयमा ! माणूस आहारशसरीरे नो अमणूल आहारपसरीरे) हे गौतल ! मनुष्य का आहारक शरीर होता है, मनुष्येतर का आहारकशरीर नहीं होता (जह मणूस आहारगसरीरे किं संच्छिम मणूस आहारगलरीरे, गन्नवक्कंतिय मणून आहागरग આહારશરીર વક્તવ્યતા शहाथ-(आहारगसरीरेणं भंते ! कइविहे पण्णते) भगवन् । गाडा२४शरीर है। प्रारना ४॥ छ ? (गोरमा ! एगागारे पण्णत्ते) गौतम । मे २ri sai छ (जइ एगागारे किं मणूस आहारगसरीरे, अमणूस आहारगसरीरे) मगर ने मे४ 24131२ सय छ तशु मनुध्यनु भा २४॥२ छाय छे मरा२ मनुष्यतरतु माहा२४शरीर डाय छे ? (गोयमा | म. णूस आहारगसरीरे नो अमणूस आहारगसरीरे) गौतम । मनुध्यनु 218२३शरी२ हाय छे. मनुष्येतरनु माई।२४शरी२ नथी उातु (जइ मणूस आहारगसरीरे किं समुच्छिम मणूस आहारगसरीरे, गम्भवदंतिय मणूस आहारगमरीरे ?) मा२ मनुष्यनु मा.२५शरीर डाय છે તે શું સંમૂછિમ મનુષ્યનું આ રકશરીર હોય છે અથવા ગર્ભજ મનુષ્યનુ આહાર

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