Book Title: Pragnapanasutram Part 04
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 744
________________ अमयबोधिनी टीका पद २१ सू० ६ वैक्रियशरीरसंस्थाननिरूपणम् ७ संख्येयभागमात्रम्, पड़रत्नयोऽवगन्तव्या, 'एवं माहिदेवि' एवम्-सनत्कुमारोक्तरीत्या माहेन्द्रेऽपि कल्पे भवधारणीया शरीरावगाहना जघन्येन अङ्गुलस्यासंख्येयभागमात्रम् उत्कृष्टे तु परत्नयोऽवसेंया, एतच्च पदहस्तपरिमाणं सप्तसागरोपमस्थितिदेवांपेक्षयाऽवसेयम्, द्वयादि षट्सागरोपमपर्यन्तस्थितिकेषु तु येषां सनत्कुमारमाहेन्द्रकल्पयो हूँ सागरोपमे स्थितिस्तेषामुस्कृष्टेन भवधारणीया परिपूर्ण सप्तहस्तप्रमाणा शरीरावगाहना, येषां त्रीणीसागरोपमाणि स्थितिस्तेषां षड्हस्ताः चत्वारोहस्तस्यैकादशभागांश्च, येषां चत्वारि सागरोपमाणि स्थितिस्तेषां पहस्तास्त्रयश्च हस्तस्यैकादशभागाः, येषां पञ्चसागरोपमाणि स्थितिस्तेषां पहस्ताः द्वौच हस्तस्यैकादशभांगौ, येषां षट्सागरोपमाणि स्थितिस्तेषां षड्हस्ताः एकश्च हस्तस्यैकादर्शभागः, येषां पुनः परिपूर्णानि सप्तसागरोपमाणि स्थितिस्तेषां परिपूर्णाः पडूहस्ता भवधारणीया शरीरावगाहना अवगन्तव्या, तथाचोक्तम्-'अयरतिगंठिह जेसि सर्णकुमारे तहव मादिदे। छंह हाथ की होती है। इसी प्रकार माहेन्द्र कल्प में जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग की और उत्कृष्ट छह हाथ की अवगाहना है। अवगाहना का यह छल्हे हाथ का जो प्रमाण कहा गया है सो सात सागरोपम की स्थिति वाले देवों की अपेक्षा से समझना चाहिए। जिन देवों की स्थिति दो सागरोपम से छह सागरोपम तक है, उनकी अवगाहना इस प्रकार है-सनत्कुमार और माहेन्द्र कल्प में जिन देवों की स्थिति दो सागरोपम की है, उनकी भवंधारणीर्य अवगाहना पूर्ण सात हाथ की होती है, जिन की स्थिति तीन सागरोपम की है उनकी अवगाहना छह हाथ की और एक हाथ के भाग की है। जिन की स्थिति चार सागरोपम की है, उने की छह हाथ और एक हाथ के हाथ की हैं। जिन की स्थिति पांच सांगरोपम की है, उनकी स्थिति छह हाथ और एक हाथ के भाग की है। जिन की स्थिति छह सागरोपम की है, उनकी अवगाहना छह हाथ और भाग की है। जिन की स्थिति पूरे सात सागरोपम की है, उनकी पूरी छह हाथ की એજ પ્રકારે મહેન્દ્ર કલ્પમાં જંઘન્ય અંગુલના અસંખ્યતમા ભાગની અને ઉત્કૃષ્ટ છે હોંથની અવગાહના છે. અવગાહનાના છ હાથનું જે પ્રમાણ હેલું છે તે સાત સાગરોપ મની સ્થિતિવાળા દેવોની અપેક્ષાએ સમજવું જોઈએ. જે દેવની સ્થિતિ બે સાગરોપમથી છ સાગરેપમ સુધીની છે, તેમની અવગાહના આ પ્રકારે છે-સનકુમાર અને મહેન્દ્ર કપમાં જે દેવોની સ્થિતિ બે સાગરોપમની છે, તેમની ભવધારણીય અવગાહના પૂર્ણ સાત હાથની હોય છે. જેમની સ્થિતિ ત્રણ સાગરોપમની છે, તેમની અવગાહના છે હાથની અને એક હાથ કે ભાગની છે જેમની સ્થિતિ ચાર સાગરોપ ની છે, તેમની છ હાથ અને એક હાથના ની છે. જેમની સ્થિતિ પાંચ સાગરોપમની છે, તેમની * સ્થિતિ છ હાથ અને એક હાથના જ ભાગની છે, જેમની સ્થિતિ છ સાગરોપમની છે. તેમની અવગાહના છે હાથ અને તે ભાગની છે, જેમની સ્થિતિ પુરા સાત સાગર્પમનો

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