Book Title: Pragnapanasutram Part 04
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 738
________________ प्रमैयबोधिनी टीका पद २१ सू० ६ वैफियशरीरसंस्थाननिरूपणम् ७२७ ॥१॥ छट्टीए तइयपयरे दो सय पण्णासयाहोति" स चैत्र च षष्ठ्याः प्रथमे प्रतरे भवति उत्सेधः । द्वापष्टि धषि सानि प्रतरे प्रतरे च वृद्धयः ॥१॥ पष्ठयां तृतीयप्रतरे द्विशतं पञ्चाशत् भवन्ति, अस्या अपि सार्द्धगाथाया अर्थः स्पष्टः, अथ पष्टपृथिव्या नैरयिकाणामुत्कृप्टे. नोत्तरमै क्रिशरीरावगाहनापरिमाणमाह-'उत्तरवेउव्विया पंचधणुसयाई तमःप्रभापृथिवीनैरयिकाणामुत्कृष्टेन उत्तरवैक्रियाशरीरावगाहना पञ्चधनुःशतानि अवगन्तव्या, एतदपि परिमाणं तृतीय प्रस्तटापेक्षयाऽवगन्तव्यम्, प्रथमद्वितीययोः प्रस्तटयोस्तु स्वस्वमवधारणीयापेक्षया द्विगुणं द्विगुणमवसेयम् ६, अथाध सप्तमपृथिव्याः शरीरावगाहनामानमाह-'अहे सत्तमाए भवधारणिज्जा पंच धणुसयाई एवं उक्कोसेग' अधःसप्तस्याः पृथिव्या नैरयिकाणां भवधारणीयाशरीरावगाहना उत्कृष्टेन पञ्चधनुशतानि अवसेया इत्येवमुत्कृष्टेनोक्ता 'उत्तरवेउब्धिया धणुसहस्सं' अधःसप्तमपृथिवीनैरयिकस्य उत्तरवैक्रिया शरीरावगाहना तु धनुः सहस्त्रम् अव सेया, उल्लिखित प्रमाण निष्पन्न होता है। कहा भी है-पांचवीं पृथ्वी के पांचवें पाथडे में अवगाहना का जो प्रमाण कहा है, वहीं प्रमाण छठी पृथ्वी के प्रथम पाथडे में होता है। तत्पश्चातू प्रत्येक पाथडे में साढे बासठ धनुप मिलाना चाहिए। ऐसा करने से छठी पृथ्वी के तीसरे पाथडे में अढाई सौ धनुष की अवगाहना सिद्ध होती है। ___अब छट्ठी पृथ्वी के नारकों की उत्कृष्ट उत्तर वैक्रिय अवगाहना का परिमाण कहते हैं-छठी तमा पृथ्वी के नारकों की उत्कृष्ट उत्तर वैक्रिय अवगाहना पांच सौ धनुष की समझनी चाहिए। यह परिमाण भी तीसरे प्रस्तर की अपेक्षा से कहा गया है। प्रथम और द्वितीय प्रस्तर में अपने-अपने अवधारणीय शरीर की अवगाहना से दुगुनी-दुगुनी अवगाहना होती है। ___अब सातवीं पृथ्वी के नारकों के शरीर की अवगाहना कही जाती है-सातवीं पृथ्वी के नारकों की उत्कृष्ट भवधारणीय शरीरावगाहना पांच सौ धनुष की कही गई है और उत्तर वैक्रिय अवगाहना एक हजार धनुष की होती है। જે પ્રમાણુ કહ્યું છે, તેજ પ્રમાણ છટ્રી પૃથ્વીના પ્રથમ પાથડામાં હોય છે. તત્પશ્ચત પ્રત્યેક પાથડામાં સાડી બાસઠ ધનુષ મેળવવાં જોઈએ. એમ કરવાથી છટ્રી પૃથ્વીના ત્રીજા પાથડામાં અઢીસે ધનુષની અવગહના સિદ્ધ થાય છે. હવે છો પૃથ્વીના નારકની ઉત્કૃષ્ટ ઉત્તરક્રિય અવગાહનાનું પરિમાણ કહે છે છઠ્ઠી તમા પૃથ્વીના નારકેની ઉત્કૃષ્ટ ઉત્તરક્રિય અવગાહના પાંચસે ધનુષની સમજવી જોઈએ આ પરિમાણ પણ ત્રીજા પ્રસ્તરની અપેક્ષાથી કહેલ છે. પ્રથમ અને દ્વિતીય પ્રસ્તરમાં પિત–પિતાના ભવધારણીય શરીરની અવગાહનાથી બમણી-બમણું અવગાહના હોય છે. હવે સાતમી પૃથ્વીના નારકેના શરીરની અવગાહન કહેવાય છે સાતમી પૃથ્વીના નારકેની ઉત્કૃષ્ટ ભવધારણીય શરીરવગાહના પાંચસે ધનુષની કહેલી છે અને ઉત્તરક્રિય અવગાહના એકહજાર ધનુષની હોય છે.

Loading...

Page Navigation
1 ... 736 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808 809 810 811 812 813 814 815 816 817 818 819 820 821 822 823 824 825 826 827 828 829 830 831 832 833 834 835 836 837 838 839 840 841