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प्रबोधिनी टीका पद २० सू० ७ तीर्थकरोत्पाद निरूपणम्
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गौतम ! नायमर्थः समर्थः, केवलिप्रज्ञप्तं धर्म लभेन श्रवणतया एवं वायुकायिकोऽपि, वनस्पतिकायिकः खलु पृच्छा, गौतम ! नायमर्थ समर्थः, अन्तक्रियां पुनः कुर्यात्, द्वीन्द्रियत्रीन्द्रियचतुरिन्द्रियः खलु पृच्छा, गौतम ! नायमर्थः समर्थः, मन:पर्ययज्ञानमुत्पादयेत्, पञ्चे न्द्रिय तिर्यग्योनिक मनुष्य वानृव्यन्तर ज्योतिष्काः खलु पृच्छा, गौतम ! नायमर्थः समर्थः, अन्तक्रियां पुनःकुर्यात्, सौधमगदेवः खलु भदन्त ! अनन्तरं पवं च्युत्वा तीर्थकत्वं लभेत ? होता है (तिस्थगरसं लभेजा ?) तीर्थंकरत्व प्राप्त करता है ? (णो इण्डे समठे) हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं हैं ( केवलि पण्णत्तं धम्मं लभेजा मवणयाए ।) केवल द्वारा प्ररूपित धर्म का श्रवण प्राप्त करता है ( एवं वाउकाइए वि) इसी प्रकार वायुकायिक भी ( वणस्सहकाइए णं पुच्छा ?) वनस्पतिकायिक संबंधी पइन (गोयमा ! णी इट्ठे समट्ठे) हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं (अंतकिरियं पुण करेज्जा) किन्तु अन्तक्रिया करता है (वेदिय तेइंदिय चउरिदिए णं पुच्छा ?) जीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय चतुरिन्द्रिय संबंधी प्रश्न ? (गोयमा ! णो इणट्टे समहे) हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं (मणपजवनाणं उप्पाडेजा ) मनः पर्यवज्ञान प्राप्त करता है ।
(पंचिदियतिरिक्त्र जोणिय मणूस वाणमंतर जोइ मिए णं पुच्छा ?) पंचेन्द्रिय निर्यच, मनुष्य, वानव्यन्तर, ज्योतिष्क संबंधी प्रश्न ? (गोयमा ! णो इणट्ठे सम) हे गौतम | यह अर्थ समर्थ नहीं (अंततिरियं पुण करेज्जा) अन्तक्रिया तो करता है ।
(सोहम्मगदेवेशं भंते ! अनंतरं चयं चइत्ता) हे भगवन ! सौधर्म कल्प का देव अनन्तर चय करके (तित्थगरत्तं लभेजा) तीर्थकरत्व का लाभ करता है ? (गोवमा ! अस्थेगइए लभेजा, अत्थेगइए नो लभेजा) हे गौतम ! कोई लाभ અસમર્થ નથી
श्रवायु प्राप्त हरे पुन्हा ?) वनस्पतिअर्थ समर्थ नथी
तीर्थ ४२वने प्राप्त ४२ छ ? (जो इणट्टे समट्टे) हे गौतम । (केवलिपण्णत्तं धम्मं लभेज्जा सणयाए) देवजी द्वारा प्रति धर्मतु छे ( एवं बाउकाइए वि) गोष्ट प्रारे वायु४यि य (वणस्स इकाइएणं प्रायि संबंधी प्रश्न ? (गोयमा ! णो इणट्टे समट्टे) हे गौतम । आा (मणपज्जवनाणं उप्पा डेन्जा) भनःपर्यविज्ञान प्राप्त उरे हे
(पंचिंदियतिरिक्खजोणिय मणूस वाणमंतरजोइसिए ण पुन्हा १)
पंचेन्द्रिय तिर्यय,
भनुष्य, वानव्यन्तर, ज्योतिष्ठ समधी प्रश्न ? (गोयमा ! णो इणट्टे समट्टे) हे गौतम । मा अर्थ समर्थ नथी (अंतकिरियं पुण करेज्जा) अन्तड़िया तो
(सोहम्मगदेवेणं भंते ! अनंतर चयं चइत्ता) हे भगवन् । सोधर्महना हेव नन्नर त्वने। बाल रे हे ? (गोयमा ' अत्थेइ लज्जा सास ४२, हा साल नधी भुता एवं जहा
यय ४१ने (तित्थगरत्तं लभेज्जा) तीर्थ अत्येगइए नो लभेज्जा) हे गौतम!