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प्रमेयबोधिनो टीका पद २० सू० ५ पृथ्वीकायाद्युद्वर्तननिरूपणहू
पृथिवी कायिकः खलु भदन्त ! पृथिवीदा पिवेभ्योऽनन्तरमुत्य पृथिवीपाधिकेषु उपपद्येत ? itar ! अस्त्येक उपपद्येत, अस्त्ये को नोपपद्येत, यः खलु यदन्य उत्पद्येत स खलु केवलि प्रज्ञप्तं धर्म लभेत श्रवणनया ? गौतम ! नायमर्थः समर्थः एवम् अप्फायिकादिषु निरुतरं भणितव्यम् यावच्चतुरिन्द्रियेषु पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिकरानुष्येषु यथा नैरयिकः, वानव्यन्तर ज्योतिष्कवैमानिकेषु प्रतिषेधः एवं यथा पृथिवीकायिको भणितस्तथैव कायिकोऽपि,
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( पुढवीकाइए णं ते! पुढवीकाइएहंतो अनंतरं अच्चहित्ता पुढचीकाइएस उववज्जेज्जा !) हे भगवन् ! क्या पृथ्वी कायिक, पृथ्वीकापिकों से अनन्तर उद्वर्त्तन करके पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होता है ? (गोमा ! अत्थेगइए उच्च ज्जेज्जा अस्थेगइए णो ववज्जेला ?) हे गौतम! कोइ कोई उत्पन्न होता है, कोई-कोई नहीं उत्पन्न होना (जे गं अंते ! उज्जेज्जा) हे भगवन्! जो उत्पन्न होना है (सेणं केवलिपण्णत्तं धम्मं लभेजा सवणयाए ?) वह क्या केवलिप्ररूपित धर्म का श्रवण प्राप्त करता है ? (गोपमा ! जो इट्टे समहे) हे गौनम ! यह अर्थ समर्थ नहीं (एवं आउक्कायादिसु निरंतरं भाभियां ) इसी प्रकार अप्रकायिक आदि में निरन्तर कहना चाहिए (जाव चरिदिग्सु) यावत् चतुरिन्द्रियों में (पंचिदियतिरिकख जोणिय भणुस्सेस) पंचेन्द्रिय तिर्यचों और मनुष्यों में (जहा नेरहए) जैसा दारक ( वाणमंतर जोसियमागिएसु पडिसेहो ) वानत्र्यन्तरों ज्योतिष्कों वैमानिकों में निषेध समझ लेना चाहिए। ( एवं जहा पुढविकाइओ भणिओ) इस प्रकार जैसा पृथ्वीकायिक कहा (तहेब आउकाओ चि) इसी प्रकार अप्रकाथिक भी ( वणसह काहओ विभागको) वनस्पतिकायिक
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(पुढवीक,इएणं भंते | पुढत्रीकाइएहितो अनंतरं नट्टता पुढवीकाइएमु उववज्ज्जेज्जा १) હે ભગવન્ ! શુ” પૃથ્વીકાકિ, પૃથ્વીકાયિકામાથી અનન્તર ઉદ્ભવત કરીને પૃથ્વીકાયિકમાં उत्यन्न थाय छे ? (गोयमा । अत्येगइए उपवज्जेज्जा अत्येगइए णो उचवज्जेज्जा ) हे गौतम! अई अई उत्पन्न थाय छे, भने अर्थ- नयी उत्पन्न थता (जेण भंते । उववज्जेज्जा) हे भगवन् । ? उत्पन्न थाय छे ( से णं केवलिपण्णत्तं धग्मं लभेज्जा सवणचाए ?) ते शु देवसि प्र३षित धर्म श्रव आप्त पुरे छे ? (गोयमा | णो इणडे समट्ठे) हे गौतम! भा અથ સમ નથી.
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(एवँ आउकाइयादिसु निग्तरं भाणियव्यं) से अरे हिमांशु निरन्तर 'डेवु' लेछो. (जात्र चउरिंदियसु ) यावत् तुन्द्रियां (नियितिरिक्ग्वजोगियमणुम्सेस) पचेन्द्रिय तिर्यथा याने मनुष्यामां (जहा नेग्झ) नेवा नार ( वाणमंतर जोइसिय प्रेमानिसु पडिसेहो ) वानव्यन्तरो ज्योतिष्डी, वैमानिशमा निषेत्र घडेल हे
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(एवं जहा पुढत्रिकाओ भणिओ) मेरे पृथ्वी (तदेव आच्छाइओ वि) शे* यारे यायायिक दायु हाडी होवा गने (मकाओ विभाणियच्यो)