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प्रमेयबोधिनी टीका पद १८ सू.० ३ कायद्वारनिरूपणम्
३५९ पृथक्त्वम्-सातिरेकम्, पृथिवीकायिकः पर्याप्तकः पृच्छा ? गौतम ! जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम् उस्कृष्टेन संख्येयानि वर्षसहस्राणि, एवम् अप्कायिकोऽपि, तेजस्कायिकः पर्याप्तकः पृच्छा ? गौतम ! जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम्, उत्कृष्टेन संख्येयानि रात्रिदिवानि, वायुकायिका पर्याप्तः खलु पृच्छा ? गौतम ! जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम्, उत्कृष्टेन संख्येयानि वर्षसहस्राणि, वनस्पतिकायिकः पर्याप्तकः पृच्छा ? गौतम ! जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम्, उत्कृष्टेन संख्येयानि वर्षसहस्राणि, त्रसकायिकः पर्याप्तकः पृच्छा ? गौतम ! जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम्, उत्कृष्टेन साग रोपमशतपृथवत्वं सातिरेकम्, द्वारम् ४॥ सू० ३॥ ____टीका-पूर्वम् इन्द्रियद्वारमधिकृत्य कायस्थितिः प्ररूपिता, गथ सम्प्रति चतुर्थ कायद्वारमधिकृत्य कायस्थिति प्ररूपयितुमाह-'सदाइएणं भंते ! सकाइएत्ति कालो केवञ्चिरं होइ !' __ (पुढविकाइए पज्जन्सए पुच्छा ?) पृथ्वीकायिक पर्याप्तक संबंधी प्रश्न ? (गोयमा ! जहणणेणं अंतोसुहत्तं, उनोसेणं संखेज्जाई वाससहरूलाई) हे गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहर्त, उत्कृष्ट संख्याल हजार वर्ष (एवं आउए वि) इसी प्रकार अप्कायिक भी (तेउकाइए पज्जत्तए पुच्छा?) तेजस्काधिक पर्याप्तक के विषयमें प्रश्न ? (सोया! जहण्णेणं अंतोमुहुतं) हे गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहर्त (उकोसेणं संखेज्जाई वाससहस्साई) उत्कृष्ट संख्यात हजार वर्ष (वणस्लइकाइय पज्जत्तए पुच्छा ?) वनस्पतिकायिक पर्याप्त के संबंध में प्रश्न ? (गोयला! जहणणं अंतो. मुहत्तं, उझोलेणं संखेज्जाई वाससहस्साई) जघन्य अन्तमुहर्त, उत्कृष्ट संख्यात हजार वर्ष (तसकाइयपज्जन्तए पुच्छा ?) अलकाधिक पर्याप्त संबंधी प्रश्न ? (गोयमा! जहणणं अंतोनुहम, उकोलेणं सागरोवमलयपुहत्तं सातिरेग) हे गौतम ! जघन्य अन्तर्गत, उत्कृष्ट पृथक्त्व लो लागरोफ्ल से कुछ अधिक बार ४ टीकार्थ-इससे पहले इन्द्रिय द्वार को लेकर कायस्थिति की प्ररूपणा की गई
(पुढवीकाइए पज्जत्तए पुच्छा ?) पृथ्वी पर्याप्त समधी प्रश्न (गोयमा ! जहण्णेण अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं संखेज्जाइं वाससहस्साइ) 0 गौतम | धन्यथी मतभुत मन उष्ट सध्यात २ १ (एवं आउएवि) से ते४२४ायिनी प्रमाणे म५४ायिना सभा र सम४. (तेउकाइए पज्जत्तए पुच्छा) पर्याप्त समयमा प्रश्न (गोयमा । जहणेणं अतोमुहुत्त) 3 गौतम | धन्यथी मतमुत (उक्कोसेणं संखेज्जाइं वाससहर नाई) दृष्टथी सध्यात २ वर्ष (वणस्सइकाइय पज्जत्तए पुच्छा ?) पनर५तिथि पर्याप्त समधी प्रश्न छे. (गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं संखेज्जाई वाससहस्साइं) गौतम धन्यथी मतभुत मन था संत २ वर्ष (तसकाइय पजत्तए पुच्छा ?) सय४ पर्याप्त समधी प्रश्न छे. (गोयमा'! जहणेणं अंतोमुहृत्तं उक्कोसेणं सागरोवमसयपुहुत्तं सातिरेग) गौतम ! धन्यथा અન્તર્મુહૂર્ત અને ઉત્કૃષ્ટ સાગરેપમ શુતપૂવથી કંઈક વધારે. (દ્વાર )
ટીકાથ–આનાથી પહેલાં ઈન્દ્રિયદ્વારને લઈને કાયસ્થિતિની પ્રરૂપણ કરવામાં આવેલ