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प्रबोधिनी टीका पद १९ सू० २ एकसमयेऽन्त क्रियाकरणनिरूपणम्
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मये केवइया अंतकिरियं पकरेंति ? गोयमा ! जहष्णेणं एको वा दो वा तिन्नि वा, उक्कोसेणं चतारि, एवं आउक्काइया वि चत्तारि, वणस्सइकाइया छच, पंचिदियतिरिक्खजोणिया दस, तिरिक्खजोणिणीओ दस, मणुस्सा दस, मणुरूसीओ बीसं वाणमंतरा दस, वाणमंतरीओ पंच, जोइसिया दल, जोइसिजीओ वीस, वेमाणिया अट्ठसयं वेमा
णीओ वीसं ॥ सू० २ ॥
छाया - अनन्तरागता नैरयिका एकसमये कियन्तोऽन्तक्रियां प्रकुर्वन्ति ? गौतम ! जघन्येन एको वा द्वौ वा त्रयोवा, उत्कृष्टेन दश, रत्नप्रभा पृथिवी नैरयिका अपि एवञ्चैव यावद् वालुकाप्रभापृथिवी नैरयिका अपि, अनन्तरागताः खलु भदन्त ! पङ्कप्रभा पृथिवी नैरयिका एकसमयेन कियन्तोऽन्तक्रियां प्रकुर्वन्ति ? गौतम ! जघन्येन एको वा द्वौ वा त्रयो वा, उत्कृष्टेन
एक समय में अन्तक्रिया करने की बत्तव्यता
शब्दार्थ - (अनंतरागया नेरइया एमसमर केवइया अंतकिरियं पकरेति ? ) अनन्तरागत नैरथिक एक समय में कितने अन्तक्रिया करते हैं ? (गोयमा ! जहनेणं एगो वा दो वा तिम्नि वा) हे गौतम ! जघन्य एक, दो अथवा तीन (उक्कोसेणं दस ) . उत्कृष्ट दश (स्यणप्पभा पुढची नेरइया वि एवं चेव ) रत्नप्रभा पृथ्वी के नारक भी इसी प्रकार (जाव बालुपभा पुढवीनेरइया वि) यावत् वालुकाप्रभा पृथ्वी के नारक भी
(अनंतरागया पंकप्पा पुढची नेरइया) अनन्तगगत पंकप्रभा पृथ्वी के नारक (एसमए णं केवइया अंततिरियं पकरेति ?) एक समय में कितने अन्तक्रिया करते हैं ? (गोयमा ! जहण्जेणं एक्को वा दो वा तिनि वा) हे गौतम ! એક સમયમાં અન્તક્રિયા કરવાની વક્તવ્યતા
शब्दार्थ -(अणंतरागया नेरइया एगसमए केवइया अंतकिरियं पकरे ति) अनन्तरागत नैरयिष्ठ ! सभयभां डेटसी अन्तड़िया १२ छे ? (गोयमा । जहणेण एगो वा दो वात वा) हे गौतम! धन्य भेड, मे, त्र, ( उक्कोसेण दस) उष्ट ४२ रा ( रयणप्पभा पुढवी या वि एवं चैव) रत्नप्रभा पृथ्वीना नार४ पशु न प्रारे (जाव वालुयपापभा पुढवी नेरइया वि) यावत् वासुप्रला पृथ्वीना नार या. ( अतरागया पंकापभा पुढवी नेरइया) अनन्तरागत चंद्रमा पृथ्वीना ना२४ (एग समएणं केवइया अंततिरियं पकरे ति) शो समयमा टसी सन्नडिया ४२ छे ? (गोयमा ! जहणं एको वा दोवा तिन्नि या) हे गौतम धन्य मे४, मे अथवा ऋणु (चक्को सेणं चत्तारि ) उष्ट यार,