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प्रामा ५०४ नायपर्यः समर्थः नैरयिकः खलु भद त ! नैरयिकेभ्योऽनन्तवृत्य पञ्चन्द्रियतिर्यग्योनिकेषु उपपधेत ? अस्त्वेकः उपपद्यते, अस्त्ये को नो उपपचने, यः खल भदन्त ! नैरयिक योऽनन्तरम् एश्चेन्द्रियनिग्यो निवे.पु उपपधेन स एल्लु भदन्त ! केवरिप्रज्ञप्तं धर्म लभेत श्रवणतया ? गौतम ! अरत्येको लभेत, अत्येको को लभेत, यः खलु भदन्त ! केवलिप्रज्ञप्तं धर्म लभेत श्रवणता, स खलु केवल बोधि बुध्येत ? गौतम ! होता है ? (गोधमा ! णो इगटे साडे) हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं (नेहए णं अंते ! नेरइएहितो अणंतरं उच्चारिशा असुरकुमारे उपजेजा) भगवन् ! क्या नारक नारकों से निकलकर सीधा अपुर कुलाने में उत्पन्न होता है ?) (गोयमा ! णो इणढे समढे) हे गौतम ! यह अर्थ जसर्थ नहीं (वं निरंतरं जाव चाउरिदिएलु पुन्छा ?) इसी प्रकार निरन्तर वाचत चौहन्द्रियों में पृच्छा? (गोयमा ! णो इणढे समढे) हे गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं ___ (नेरइए णं भंते ! नेरहस्तिो अणंतरं उच्चट्टित्ता) हे भगवन् ! नारकनारकों से निकल कर सीधा (पंचिदियतिनिध ग्वजाणिसु उपधज्जेजा ?) पंचे. न्द्रिय तियंचयोनिकों में उत्पन्न होता है ? (अत्थेगहए उजेजा. अथेगाए णो उववज्जेज्जा) कोई उत्पन्न होता है, कोई नहीं उत्पन्न होता (जे णं भंते ! नेरईएहितो अणंतरं पंचिंदियतिरिक्रमजोणिएलु उपचज्जेजा) हे भगवन् ! जो नारकों से पंचेन्द्रिय तिर्यचयोनिकों में उत्पन्न होता है (से णं भंते !) यह भगवन् ! (केवलिपन्नत्तं धम्म) केलि प्ररूपित धर्म मा (लभेजा सघणयाए) श्रवण प्राप्त करता है-सुन सकता है ? (गोयमा ! अत्यंगइए लभेजा, अत्थेगहए नो लभेजा) हे गौतम ! कोई मास करता है, कोई नहीं प्राप्त करता (जेणं भंते ! इणद्वे सम४) ७ गौतम | 241 अथ समय नथी (नेरहाणं भंते । नेरइपहितो अणंतरं उच्चट्टित्ता असुरकुमारेसु उववज्जेज्जा ?) ॐ सगवन् । शु न२४ तामाथी निजाद सीधा मसु२४मारीमा उत्पन्न थाय छ ? (गोयमा । नो इणद्वे समढें) है गौतम ! २मा म समर्थ नथी (एवं निरंतरं जाव चरिदिएसु पुच्छा ) मेर निरन्तर यावत् यतुन्द्रियामा २छ। १ (गोयमा । णो इणढे समढे) 3 गौतम ! म अर्थ समय नथी.
(नेरइएणं भंते ! नेरइएहितो अणंतरं उठचट्टित्ता) भगवन् । ना२४ ना२३माथी निxणीने सीधा (पंचिंदियतिरिक्ख जोणिएसु उववज्जेज्जा ?) ५थेन्द्रिय तिय य योनिमा अत्पन्न थाय छ १ (अत्यंगइए उवयज्जेज्जा, अत्थेगइए णो उववज्जेन्जा) 31. अत्पन्न याय है, नथी उत्पन्न थना (जे भंते | नेरइएहितो अणंतरं पंचिंदियतिरिक्खजोणिएसु उववज्जेज्जा) हे भगवन् । २ नारथी ५येन्द्रिय तिय य योनिमा उत्पन्न थाय छे (सेणं भंते') त भगवन् । (केवलिपन्नत्तं धम्) यी ५३पित धनु (लभेज्जा सवणयाए) श्र प्राप्त ४२ छ - मणी शछे (गोयमा । अत्थेगइए लभेज्जा, अत्थेगइए नो लभेज्जा) गौतम । ३६ प्राप्त ४२ 2. 3 नयी प्रारत २ता जे णं भंते ! केवलिपन्नत्तं धम्मं लभेज्जा सवणयाए)